जीवन धरोहर

Last Updated 28 Dec 2020 12:19:35 AM IST

कीचड़ में कमल उगना एक सुयोग है। आमतौर से उसमें गंदे कीड़े ही कुलबुलाते रहते हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

जिन्होंने लोकप्रवाह में बहने के लिए आत्मसमर्पण कर दिया, समझना चाहिए उनके लिए नर-पशु स्तर का जीवनयापन ही भाग्य विधान जैसा बन गया। वे खाते, सोते, पाप बटोरते और रोते-कलपते मौत के मुंह में चले जाते हैं। सष्टा ने मनुष्य जीवन का बहुमूल्य जीवन धरोहर के रूप में दिया था, होना यह चाहिए था कि इस सुयोग का लाभ उठाकर अपनी अपूर्णता पूर्णता में बदली गई होती और विमानव की सेवा-साधना में संलग्न रहकर धन्य बना जाता, असंख्यों को सन्मार्ग में चलाकर सत्प्रवृत्तियों के संवर्धन का अजस पुण्य कमाया गया होता। यह तो बन नहीं पड़ता, उल्टे पाप का पिटारा सिर पर लादकर लंबे भविष्य को अंधकारमय बनाया जाता है। सत्यपरायणों और न्यायनिष्ठों को समय-समय पर दूसरों की सहायता भी मिलती रही है, इतिहास इसका साक्षी है।

यदि ऐसा न हुआ होता तो बहुसंख्यक कुकर्मिंयों ने इस संसार की समूची शालीनता का भक्षण कर लिया होता। सत्यनिष्ठ एकाकी होने के कारण सर्वत्र पराजित-पराभूत हो गए होते किन्तु ऐसा हुआ नहीं। प्रह्लाद पथ के अनुयायी कष्ट सहकर भी अपनी विजय ध्वजा फहराते हैं। ईसा मरकर भी मरे नहीं, सुकरात की काया नष्ट होने पर भी उसका यश, वर्चस्व और दर्शन अपेक्षाकृत और भी प्रखर हुआ। गोवर्धन पर्वत उठाए जाने का संकल्प आरम्भ में असंभव लगता रहा होगा, पर समय ने सदुद्देश्य का साथ दिया। अपराधी प्रवृत्ति एक प्रकार की छूत वाली बीमारी है, जो पहले परिवार के नवोदित सदस्यों पर आक्रमण करती है।

कुकर्मी लोगों की संतानें भी अनैतिक कार्यों में ही रु चि लेती हैं। इसके अतिरिक्त ऐसा भी होता है कि जिनके साथ उनकी घनिष्ठता है, उन्हें भी उसी पतन के गर्त में गिरने का कुयोग बने। ऐसे लोग प्रयत्नपूर्वक अपना संपर्क क्षेत्र बढ़ाते हैं और उद्धत आचरणों के फलस्वरूप तत्काल बड़े लाभ मिलने के सब्जबाग दिखाते हैं। आरम्भ में हिचकने वालों की हिम्मत बढ़ाने के लिए कितने ही इस आधार पर बड़े-बड़े लाभ प्राप्त कर लेने के मनगढ़ंत वृतांत सुनाते हैं। जिन्हें सच मानने और उस प्रकार का आचरण करने में अपनी भी उपयोगिता देखकर सहज ही तैयार हो जाते हैं।



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