प्राकृतिक संपदा : संस्कृति का प्राण तत्व हैं नदियां

Last Updated 13 Oct 2025 03:32:31 PM IST

नदियां किसी भी संस्कृति का प्राण तत्त्व हैं। विभिन्न संस्कृतियों के जन्म और उनके विकास का आधार यही नदियाँ हैं जो अपने अमृत से अपनी संततियों में जीवन रस का संचार करती हैं।


 विश्व का इतिहास साक्षी है कि तमाम सभ्यताओं का जन्म नदियों के किनारे ही हुआ है। नदियों के निकट की उर्वर भूमि, जल की निरंतर उपलब्धता, प्राकृतिक संपदा और संसाधन और इन सबसे प्रभावित और संतुलित ऋतु चक्र के कारण ही सभ्यताओं को फलने-फूलने के लिए सबसे उत्तम स्थान नदियों के किनारे ही मिला। यही कारण है कि प्रकृति एवं पंच शक्ति पूजक हम भारतीयों के लिए नदी केवल जल की एक धारा मात्र नहीं रही, बल्कि वह उस विराट मातृ शक्ति का रूप भी है, जिसका कार्य ही है अपनी संततियों का पालन और पोषण करना। किन्तु आज की स्थितियों में हम पाते हैं कि हमने नदियों से लिया तो बहुत कुछ है किन्तु बदले में उन्हें हम कुछ दे नहीं पाए हैं, सिवाय अस्वच्छता के। 

भारत में 200 से अधिक छोटी बड़ी नदियाँ हैं। कुछ आँकड़ों के अनुसार यह संख्या 400 के आस पास है। जिनमें कुछ मुख्य और कुछ सहायक नदियाँ हैं तो कुछ छोटी और बरसाती नदियाँ हैं। इन नदियों का धार्मिक, सांस्कृतिक और आर्थिक दृष्टि से बड़ा महत्व रहा है। कुम्भ स्नान, गणोश चतुर्थी, कार्तिक स्नान, मकर संक्रांति में डुबकी और छठ पर्व के अतिरिक्त विभिन्न धार्मिक स्थलों पर भी नदियों की पूजा और उनमें डुबकी लगाने का विधान है, शुभ कार्यों, पूजन के भोग और पंचामृत में गंगा जल का क्या महत्व है, इससे तो सभी परिचित ही हैं तो मोक्ष प्राप्ति के लिए सनातन काल से अस्थि विसर्जन भी इन्हीं नदियों में ही होता आया है। सीधा सा अर्थ है कि भारतीय नदियों का संबंध भारत की सनातन चेतना, परंपरा और आस्था से तो है ही औद्योगिक और अर्थव्यवस्था की दृष्टि से भी इनका बहुत महत्व है। 

किन्तु विगत कुछ वषोर्ं में देखा गया है कि तीव्र गति से हो रही जनसंख्या वृद्धि, औद्योगिक विकास, घरेलू एवं कृषि क्षेत्र में बढ़ते दबावों के कारण जल की मांग अत्यधिक बढ़ी है, जिससे पेय जल की समस्या का संकट खड़ा तो हुआ ही है, जल की गुणवत्ता में भी कमी आई है। हमारी नदियाँ तीव्र गति से प्रदूषित हो रही हैं। विभिन्न खतरनाक तत्व जिसमें अमोनिया, नाइट्रेट और फॉस्फेट जैसे उर्वरक, डिटजेर्ंट, तेल और हाइड्रोकार्बन, कैडमियम, पारा, सीसा जैसे रासायनिक कचरे, स्टायरोफोम, प्लास्टिक और पोलीथिन सम्मिलित हैं, नदियों को प्रदूषित कर रहे हैं। 
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड  के अनुसार प्रतिदिन 60 प्रतिशत से अधिक अशोधित जल भी सीधे नदियों में जाता है। सीधी सी बात है कि नदियों में बढ़ते प्रदूषण का यह स्तर न केवल नदी की जैविकी को नुकसान पहुँचा रहा है बल्कि आम जन-जीवन को भी प्रभावित कर रहा है।

हालांकि भारत सरकार द्वारा नदियों के लिए कई योजनाएँ भी चलाई जा रही हैं जिनमें राष्ट्रीय नदी संरक्षण, गंगा एक्शन प्लान, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन, नमामि गंगे, यमुना सफाई अभियान प्रमुख हैं किन्तु ये योजनाएँ तभी सफल हो सकती हैं, जबकि लोक चेतना और उसमें भी नारी शक्ति उससे जुड़ी हो। संभवत: इसी विचार से जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार ने वर्ष 2023 में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च) के अवसर पर स्वच्छ सुजल शक्ति सम्मान का आरंभ किया।

जिसका आदर्श वाक्य है- जीवन के लिए पानी का सम्मान। चूँकि जल प्रबंधन का कार्य घरों में महिलाएँ ही संभालती हैं। जल के महत्व और उसका प्रबंधन स्त्रियाँ बहुत कुशलता से करती हैं, अत: जल संरक्षण का कार्य महिलाओं को सौंपा जाना सही दिशा में उठाया गया कदम है। इस संबंध में सबसे अच्छी बात यह है कि इस योजना का उद्देश्य जल संरक्षण के क्षेत्र में स्त्रियों की भागीदारी को मान्यता देना, उन्हें जमीनी स्तर से आगे लाकर राष्ट्रीय नेतृत्व से जोड़ना और इस प्रकार दूसरों को जल सुरक्षित भविष्य से जोड़ने का क्रांतिकारी विचार भी सम्मिलित है। इसी योजना के अंतर्गत 36 महिलाओं को सम्मानित भी किया गया। इस संबंध में राष्ट्रपति डॉ द्रौपदी मुर्मू का कथन है कि- 

देश में स्वच्छता अभियान और स्वच्छ पेय जल जैसी लोगों से जुड़ी देशव्यापी योजनाओं की सफलता में देश की महिला शक्ति की भूमिका अहम है और इस अभियान का आधार नारी है।
इसी योजना के अन्तर्गत महिलाओं को प्रशिक्षित और जागरूक भी किया जा रहा है, जिसका असर ज़मीनी स्तर पर भी देखा जा रहा है। ग्रामीण अंचलों में भी देखें तो महिलाएँ प्लास्टिक और पॉलिथीन के प्रयोग से बचने के लिए लोगों को प्रेरित कर रही हैं। प्लास्टिक की बोतलें जो जल और समग्र प्रकृति के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर खड़ी हैं, महिलाएँ उनसे गुलदस्ते बनाकर कर स्व-रोजगार को भी बढ़ावा दे रही हैं। इसी प्रकार ग्रे वाटर प्रबंधन की व्यवस्था, जिससे नालियों से निकलने वाला पानी पीने के पानी को दूषित न करे और जल स्रोतों की स्वच्छता सुनिश्चित हो, इस दिशा में भी महिलाएँ बड़ी संख्या में आगे आ रही हैं। इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों जैसे यमुना की स्वच्छता में भी दिल्ली की मुख्यमंत्री के नेतृत्व में कई स्वयं सेवी संस्थान जिनमें बड़ी संख्या में स्त्रियाँ भी हैं, महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं।  

केवल इतना ही नहीं स्त्रियों के नेतृत्व में नदियों और जल प्रबंधन से सबंधित और भी कार्य हो रहे हैं, जिसका एक उदाहरण हैं भारतीय वैज्ञानिक डॉ नीलिमा गुप्ता, जिन्होंने लगभग चार दशक से अधिक समय तक गंगा नदी के प्रदूषण पर शोध करके प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड, डब्लूडब्लू एफ, एनजीटी  को अपने शोध से परिचित कराया और इससे सम्बद्ध कई परियोजनाएँ भी संचालित कीं। नदियों में बढ़ते प्रदूषण की समस्या पर उनका कहना है कि नदियों में बढ़ते प्रदूषण के कारण परजीवी बढ़ रहे हैं। जलीय जीवन इससे बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। जिसका कुप्रभाव पर्यावरण और स्वास्थ्य के साथ भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। 

इसी प्रकार सी टू सोर्स गंगा नदी अभियान में भारत और बांग्लादेश में गंगा नदी में प्लास्टिक प्रदूषण का अध्ययन करने वाली महिला टीम भी महत्वपूर्ण है, जिसका उद्देश्य भी नदियों विशेषकर गंगा में बढ़ते प्रदूषण और उसके कारण समुद्र में निरंतर बढ़ते प्लास्टिक और अन्य प्रकार के कचरे की ओर ध्यान दिलाना है, जिसके कारण पारिस्थितिकी तंत्र और जलीय जीव बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं।

कुल मिलाकर देखें तो नदियों की सुरक्षा और स्वच्छता की दिशा में महिलाओं की भूमिका महत्वपूर्ण है। किन्तु यह भी सच है कि यह अभी आरंभिक चरण में ही है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि स्त्री किसी भी परिवार और समाज की धुरी होती। सभी पर्व और त्योहारों के केंद्र में भी स्त्री की ही भूमिका रहती है, तो ऐसे में सामाजिक और राष्ट्रहित से जुड़े विषयों में स्त्री यदि नेतृत्वकारी भूमिका में आती है तो निश्चय ही इसका स्वागत होना चाहिए और प्रयास यह भी होना चाहिए कि जल संरक्षण और प्रकृति से जुड़े विषयों में स्त्रियों की भागीदारी और बढ़ सके।

डॉ. विभा नायक


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