स्थिरता
एक स्तर पर आध्यात्मिक प्रक्रिया का मतलब होता है पर्वत की तरह स्थिर हो जाना है।
जग्गी वासुदेव |
जब किसी इंसान का आधार बहुत स्थिर होता है, केवल तभी वह बहुत सारी चीजें कर सकता है। जीवन में आनंद तभी बिखर सकता है, जब उसमें पूर्ण स्थिरता हो। नहीं तो बहुत ज्यादा खुशी इंसान को पागलपन की ओर ले जा सकती है। इसीलिए बहुत सारे लोग, जो थोड़े रचनात्मक, थोड़े सक्रिय और उल्लासमय होते हैं, वे आखिर में जाकर असामान्य और लगभग पागल से हो जाते हैं। दरअसल, स्थिरता के बिना आप डांस नहीं कर सकते। यही वजह है कि एक ही समय में शिव का मतलब स्थिरता और शिव का मतलब, नृत्य दोनों है।
एक ऐसा विस्फोट, जो विध्वंसक न हो, केवल तभी संभव है जब स्थिरता हो। लोग अपने जीवन को काबू करके, उसमें कमी करके या काट-छांट करके उसे स्थिर करना चाहते हैं। यह आपकी दादी-नानी का तरीका है, जो आपसे हमेशा कहती होंगी, ‘अपने को काबू करो, तभी तुममें स्थिरता आएगी’। बेशक, अगर आप मर जाएं तो आप स्थिर होंगे। मैं यकीन से यह बात कह सकता हूं। तो आम तौर पर जो लोग स्थिरता की बात करते हैं, उनका अस्तित्व घुटा हुआ है। एक तरह से वे कब्जियत वाला जीवन जी रहे हैं। क्या आप जानते हैं कि कब्ज क्या चीज होती है, इसका मतलब है कि यह थोड़ी-थोड़ी हो रही है। इसी तरह लोगों के जीवन में खुशी, प्यार, परमानंद, यहां वहां से थोड़ा-थोड़ा मिलता है।
स्थिरता यह नहीं है-कि आपने अपने जीवन को इतना सीमित कर लिया है, संकुचित कर लिया है कि आप स्थिर हो गए हैं। ऐसी स्थिरता से कुछ हासिल होने वाला नहीं। स्थिरता वह है, जहां आप सब कुछ पूरी स्पष्टता के साथ देख सकें। इसीलिए आदि योगी का जिक्र होता है, क्योंकि हम लोग स्थिरता के साथ-साथ उल्लास से भरे नृत्य की बात भी करते हैं। यह इसलिए संभव हो पाया, क्योंकि उनके पास दो से ज्यादा आंखें थीं, तीन तो नहीं, लेकिन दो से ज्यादा आंखें जरूर थीं। इसका मतलब यह हुआ कि वह आम लोगों से कहीं ज्यादा देख सकते थे। अगर आप चीजों का एक ही हिस्सा देखेंगे तो आप स्थिर नहीं हो सकते। तो सारी कोशिश बेहतर देखने की है। दशर्न का मतलब देखना होता है। यह पूरी संस्कृति इसी के बारे में बात करती आई है।
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