समय-संयम

Last Updated 02 Nov 2020 03:26:09 AM IST

सुख, शान्ति, सन्तोष, सफलता एवं स्वास्थ्य आदि के पारितोषिक असामयिक जीवन-क्रम वालों से कोसों दूर रहा करते हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

जिन्दगी जीने के लिए मिली है खो डालने के लिए नहीं। समय-सम्मत व्यवस्था के अभाव में इस परम दुर्लभ मानव-जीवन को न तो ठीक से किया जा सकता है और न इसका कोई लाभ ही उठाया जा सकता है। यह सम्भव तभी हो सकता है जब जीवन का प्रत्येक क्षण किसी निश्चित कर्त्तव्य के लिए निर्धारित एवं जागरूक हों। असमय सोने-जागने, खाने-पीने और काम करने वाले आजीवन आरोग्य के दर्शन नहीं कर सकते। वे सदा सर्वदा शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक अथवा आध्यात्मिक किसी-न-किसी व्याधि से पीड़ित रहेंगे।

उनकी शक्ति में से कुछ को तो उनकी अव्यवस्था नष्ट कर देगी और शेष का व्याधियां शोषण कर लेंगी। समय-संयम के साथ अपना हर काम करने वाले मनुष्यों का जीवन कभी असफल नहीं हो सकता है। भले ही परिस्थितिवश वे संसार में कोई अनुकरणीय कार्य न भी कर पाएं, तब भी उनका जीवन असफल नहीं कहा जा सकता। सुख-शांतिपूर्वक एक प्रिय जिन्दगी जी लेना स्वयं ही एक बड़ी सफलता है। सफलता का मान-दंड कोई बड़ा काम ही नहीं है, उनका सच्चा मानदण्ड है-जीने की कला जो सन्तोषपूर्वक जिन्दगी को कथनीयता के साथ जी सका है, वह नि:सन्देह अपने जीवन में सफल हुआ है।

एक छोर से दूसरे छोर तक जिसका जीवन एक व्यवस्थित कार्यक्रम की तरह स्निग्ध गति से न चल कर ऊबड़-खाबड़ गिरता-पड़ता और उलझता सुलझता चलता है, उसके जीवन को असफल मान लेना ही न्याय-संगत होगा। समय पर हर काम करने वालों की सारी शक्तियां उपभोग में आने पर भी अक्षय बनी रहती हैं। समय पर काम करने का अभ्यास एक सजग प्रहरी की तरह ही होता है, जो किसी भी परिस्थिति में मनुष्य को अपने कर्त्तव्य का विस्मरण नहीं होने देता। समय आते ही सिद्ध किया हुआ अभ्यास उसे निश्चित कार्य की याद दिला देता है और प्रेरणापूर्वक उसमें लगा भी देता है? समय आते ही उक्त कार्य योग्य शक्तियों में जागरण एवं सक्रियता आ जाती है। कार्य एवं कर्त्तव्यों की पूर्णता ही जीवन की पूर्णता है, जो कि बिना समय, संयम, एवं व्यवस्थित और क्रियाशीलता के प्राप्त नहीं हो सकती।



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