संगत

Last Updated 08 Jul 2020 05:57:15 AM IST

ज्यादातर लोगों को जाने-अनजाने उनकी संगत ही गढ़ती है। हो सकता है कि उन्हें यह पता न चलता हो कि उन पर यह अकसर किस हद तक है।


सद्गुरु

आपके ऊपर सिर्फ आपके परिवार और दोस्तों का ही नहीं, बल्कि सामान्य सामाजिक दायरे का भी असर पड़ता है। मैं तो कहूंगा कि आपके सामाजिक दायरे ने आपकी शख्सियत को नब्बे फीसद तक आकार दिया है। अपनी संगत चुनने का मतलब भेदभाव करना नहीं है, बल्कि सोच-समझकर फैसला करना है कि आप कहां और किनके साथ होना चाहते हैं। निश्चित रूप से ऐसे लोगों के बीच होना कोई अच्छी बात नहीं है, जिनका स्वभाव इतना बाध्यकारी (विवशता से भरा) है कि आप उन्हें एडिक्ट मान लें, चाहे उन्हें जिस भी चीज का एडिक्शन। आपकी पूरी कोशिश विवशता से चेतनता की ओर बढ़ना है। बहुत बाध्यकारी (विवशता से भरे) स्वभाव वाले लोगों के साथ रहना इसमें मददगार नहीं होता।

आप अभी तक उस स्थिति तक नहीं पहुंचे हैं, जहां आप बहुत बाध्यकारी लोगों के बीच रहते हुए भी अपने सिस्टम के स्तर पर पूरी तरह चेतन और अप्रभावित रह सकें। आप खुद एडिक्ट हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते। मुझे आशा है कि आप नहीं होंगे, लेकिन निश्चित रूप से यह कई रूपों में आप पर असर डालेगा। अगर बाहरी प्रभावों का कोई असर नहीं होता, तो कोई आश्रम बनाने की कोशिश क्यों करता? एक आध्यात्मिक स्थान का रखरखाव एक बहुत बड़ा सिरदर्द है, जो एक उफनते समुद्र में एक मीठे पानी का स्थान हो।

एक ऐसे द्वीप की तरह उसे रखना, जो आस-पास घटित हो रही चीजों के असर से बचा रहे, बहुत मेहनत का काम है। आप चाहे जहां भी रहें, आपको अपना घर इस तरह बनाए रखना चाहिए कि वह आपके जीवन के मकसद के लिए समर्पित हो। आपके निजी स्थान को यह दर्शाना चाहिए कि आप किस दिशा में जाना चाहते हैं। इसमें किसी और के विवशता से भरे तौर-तरीके शामिल नहीं होने चाहिए। यह तब तक बहुत महत्त्वपूर्ण है, जब तक कि आप उस स्थिति तक नहीं पहुंच जाते हैं, जहां नर्क में जाने पर भी आप बिना उससे प्रभावित हुए बाहर आ सकें। सही तरह का स्पेस तैयार करना और जरूरत पड़ने पर नकारात्मक (बुरे) प्रभावों से दूर चले जाना आपके विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है।



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