आजादी

Last Updated 27 Apr 2020 12:22:46 AM IST

एक समय की बात है। एक सेठ और सेठानी रोज सत्संग में जाते थे। सेठजी के घर तोता पाला हुआ था।


श्रीराम शर्मा आचार्य

तोता रोज सेठ-सेठानी को बाहर जाते देख एक दिन पूछता हैं कि सेठजी आप रोज कहां जाते हैं। सेठजी बोले कि भाई सत्संग में ज्ञान सुनने जाते हैं। तोता कहता है सेठजी फिर तो कोई ज्ञान की बात मुझे भी बताओ। तब सेठजी कहते हैं कि ज्ञान भी कोई घर बैठे मिलता हैं। इसके लिए तो सत्संग में जाना पड़ता हैं। तोता कहता है कोई बात नहीं सेठजी आप मेरा एक काम करना। सत्संग जाओ तब संत महात्मा से एक बात पूछना कि में आजाद कब होऊंगा। सेठजी सत्संग खत्म होने के बाद संत से पूछते हैं कि महाराज हमारे घर जो तोता है; उसने पूछा है कि वो आजाद कब होगा?

संत को ऐसा सुनते ही पता नहीं क्या होता है वो बेहोश होकर गिर जाते हैं। सेठजी संत की हालत देख कर चुपचाप वहां से निकल जाते हैं। घर आते ही तोता सेठजी से पूछता है कि सेठजी संत ने क्या कहा। सेठजी कहते हैं कि तेरे किस्मत ही खराब है, जो तेरी आजादी का पूछते ही वो बेहोश हो गए। तोता कहता है कोई बात नहीं सेठजी में सब समझ गया। दूसरे दिन सेठजी सत्संग में जाने लगते हैं तब तोता पिंजरे में जानबूझ कर बेहोश होकर गिर जाता हैं। सेठजी उसे मरा हुआ मानकर जैसे ही उसे पिंजरे से बाहर निकालते है तो वो उड़ जाता है।

सत्संग जाते ही संत सेठजी को पूछते हैं कि कल आप उस तोते के बारे में पूछ रहे थे ना अब वो कहां है? सेठजी कहते हैं, हां महाराज आज सुबह वो जानबूझ कर बेहोश हो गया मैंने देखा की वो मर गया है इसलिए मैंने उसे जैसे ही बाहर निकाला तो वो उड़ गया। तब संत ने सेठजी से कहा की देखो तुम इतने समय से सत्संग सुनकर भी आज तक सांसारिक मोह-माया के पिंजरे में फंसे हुए हो और उस तोते को देखो बिना सत्संग में आए मेरा एक इशारा समझ कर आजाद हो गया।

कहानी से तात्पर्य है कि हम सत्संग में तो जाते हैं ज्ञान की बाते करते हैं या सुनते भी हैं, पर हमारा मन हमेशा सांसारिक बातों में ही उलझा रहता हैं। सत्संग में भी हम सिर्फ  उन बातों को पसंद करते हैं, जिसमें हमारा स्वार्थ सिद्ध होता हैं। जबकि सत्संग जाकर हमें सत्य को स्वीकार कर सभी बातों को महत्त्व देना चाहिए और जिस असत्य, झूठ और अहंकार को हम धारण किए हुए हैं उसे साहस के साथ मन से उतार कर सत्य को स्वीकार करना चाहिए।



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