दृष्टि

Last Updated 30 Dec 2019 12:40:12 AM IST

एक साधु अपने शिष्य के साथ किसी अंजान नगर में घूमते हुए पहुंचे। रात बहुत हो चुकी थी इसलिए वे दोनों रात गुजारने के लिए किसी आसरे की तलाश कर रहे थे।


श्रीराम शर्मा आचार्य

तभी शिष्य ने अपने गुरु  के कहने पर किसी के घर का दरवाजा खटखटाया। वो घर किसी धनी परिवार का था। परिवार का मुखिया संकीर्ण वृत्ति का था। साधु के आसरा मांगने पर उसने कहा, ‘मैं अपने घर के अंदर तो आपको नहीं ठहरा सकता, लेकिन तलघर में हमारा गोदाम है। चाहें तो रात वहां गुजार सकते हैं।’

तलघर के कठोर आंगन पर वे विश्राम की तैयारी कर ही रहे थे कि तभी साधु को दीवार में एक सुराख नजर आया। साधु कुछ देर चिंतन के बाद उसे भरने में जुट गए। शिष्य ने इसका कारण जानना चाहा तो साधु ने कहा, ‘चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती है।’ दूसरी रात वे दोनों एक निर्धन किसान के घर आसरा मांगने पहुंचे। किसान और उसकी पत्नी ने प्रेम व आदरपूर्वक उनका स्वागत किया।

फिर उन्हें रात गुजारने के लिए अपना बिस्तर भी दिया और स्वयं नीचे फर्श पर सो गए। सुबह होते ही साधु व उनके शिष्य ने देखा कि किसान और उसकी पत्नी बहुत रो रहे थे क्योंकि उनका बैल खेत में मृत पड़ा था। यह बैल किसान की रोजी-रोटी का सहारा था। यह सब देखकर शिष्य ने साधु से कहा, ‘गुरु जी, आपके पास तो अनेक सिद्धियां हैं, फिर आपने यह सब कैसे होने दिया? उस धनी के पास तो इतना कुछ था, फिर भी आपने उसके तलघर की मरम्मत करके उसकी सहायता की। जबकि इस गरीब किसान के पास कुछ ना होते हुए भी इसने हमारा इतना सम्मान किया।

फिर आपने कैसे उसके बैल को मरने दिया।’ साधु ने कहा चीजें हमेशा वैसी नहीं होतीं, जैसी दिखती है। साधु ने कहा कि उस धनी के तलघर में सुराख से मैंने देखा उस दीवार के पीछे स्वर्ण का भंडार था। लेकिन वह धनी बेहद ही लोभी और कंजूस था। इस कारण मैंने उस सुराख को बंद कर दिया, ताकि स्वर्ण का भंडार गलत हाथ में ना जाएं। जबकि इस गरीब किसान की रात्रि में इस किसान की पत्नी की मौत लिखी थी और जब यमदूत उसके प्राण हरने आए तो मैंने उन्हें रोक दिया। चूंकि यमदूत खाली हाथ नहीं जा सकते थे, इसलिए मैंने उनसे किसान के बैल के प्राण हरने के लिए कहा। अब तुम ही बताओ, मैंने सही किया या गलत। यह सुनकर शिष्य अपने गुरु  के समक्ष नतमस्तक हो गया।



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