नववर्ष
मुझसे कहते हैं मित्र कि नये वर्ष के लिए कुछ कहूं। नये वर्ष के लिए मैं कुछ न कहूंगा क्योंकि आप ही तो नया वर्ष फिर जीएंगे, जिन्होंने पिछला वर्ष पुराना कर दिया; आप नये वर्ष को भी पुराना करके ही रहेंगे।
आचार्य रजनीश ओशो |
आपने न मालूम कितने वर्ष पुराने कर दिए! पहली बात है, पुराने को मत खोजना। कल सुबह से एक प्रयोग करके देखें कि पुराने को हम न खोजें। कल जरा चैक कर अपनी पत्नी को देखें जिसे तीस वर्ष से आप देख रहे हैं।
अगर अभी मैं आपसे कहूं कि आंख बंद करके जरा पांच मिनट अपनी पत्नी का चित्र बनाइए मन में, तो आप अचानक पाएंगे कि चित्र डांवाडोल हो जाता है, बनता नहीं। क्योंकि कभी उसकी रेखा भी तो अंकित नहीं हो पाई। तो कल सुबह उठ कर नये की थोड़ी खोज करिए। नया सब तरफ है, रोज है, प्रति दिन है। और नये का सम्मान करिए, पुराने की अपेक्षा मत करिए। हम अपेक्षा करते हैं पुराने की। मैं आपसे कहता हूं, पुराने सुखों से नये दुख भी बेहतर होते हैं, क्योंकि नये होते हैं। इसलिए कई बार ऐसा होता है कि पुराने सुखों से घिरा आदमी नये दुख अपने हाथ में ईजाद करता है, खोजता है।
वह खोज सिर्फ इसलिए है कि अब नया सुख नहीं मिलता तो नया दुख ही मिल जाए। आदमी शराब पी रहा है, वेश्या के घर जा रहा है। नये दुख खोज रहा है। नया सुख तो मिलता नहीं, तो नया दुख ही सही। लेकिन हम पुराने की अपेक्षा वाले लोग हैं। इसलिए दूसरा सूत्र आपसे कहता हूं: पुराने की अपेक्षा न करें। और कल सुबह अगर पत्नी उठ कर छोड़ कर घर जाने लगे, तो एक बार भी मत कहें कि अरे तूने तो वायदा किया था। कौन किसके लिये वादा कर सकता है? तब उसे चुपचाप घर से विदा कर आएं। जिस प्रेम से उसे ले आए थे, उसी प्रेम से विदा कर आएं। यह विदा भी स्वीकार कर लें, नये की सदा संभावना है।
पत्नी चैबीस घंटे पूरी जिंदगी के साथ रहेगी, यह जरूरी क्या है? रास्ते मिलते हैं, और अलग हो जाते हैं। मिलते वक्त और अलग होते वक्त इतना परेशान होने की बात क्या है? लेकिन बड़ा मुश्किल है विदा होना। क्योंकि हम कहेंगे कि जो पुराना था उसे थिर रखना है। नया जब आए तब उसे स्वीकार करें, पुराने की आकांक्षा न करें। और तीसरी बात: कोई और आपके लिए नया नहीं कर सकेगा; आपको ही करना पड़ेगा। और ऐसा नहीं है कि आप पूरे दिन या पूरे वर्ष को नया कर लेंगे, ऐसा नहीं है, एक-एक कण, एक-एक क्षण को नया करेंगे तो अंतत: पूरा दिन, पूरा वर्ष भी नया हो जाएगा।
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