बेतुकी लकीरें

Last Updated 04 Dec 2019 03:34:48 AM IST

हम देश बनाने की जल्दी में थे। सत्तर साल के दौरान सीमा पर दोनों तरफ से कितने लोग जान गंवा चुके हैं। किसलिए?


जग्गी वासुदेव

देश जल्दबाजी में बनाया गया यानी हमने बस नक्शे पर लकीरें खींच दीं, अलग-अलग भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान में रखे बिना। जब आप भौगोलिक विशेषताओं को ध्यान में रखे बिना लकीरें खींचते हैं, तो उन लकीरों की सुरक्षा करना मुश्किल होता है। लगता है कि सेनाओं के साथ सबसे बड़ा अन्याय हुआ है। यह काम समझदारी से किया गया होता तो आज हालात ऐसे न होते। सिर्फ गांव ही नहीं, इन लकीरों ने घरों को भी बांट दिया। मैं ‘हॉल ऑफ फेम’ देखने गया, मैंने पहले विश्व युद्ध से जुड़ी प्रदशर्नी भी देखी थी जो दिल्ली में सेना ने लगाई थी। कृपया मेरी बात को सही अर्थ में समझें। लोगों को देश के लिए जीना चाहिए, देश के लिए मरना नहीं चाहिए, बशर्ते कोई गंभीर परिस्थिति न हो, जिसे टाला न जा सके। पर जब आप एक अप्राकृतिक सीमा की सुरक्षा करते हैं, तो बहुत सारे लोग बेवजह मारे जाते हैं। हमने बेतुकी लकीरें खींच दी हैं।

खास तौर पर पश्चिमी बॉर्डर इस तरह खींचा गया है कि कोई नहीं जानता कि लकीर कहां है। हम इतिहास का पोस्ट-मार्टम नहीं कर सकते। अब यह हो चुका है। पर कम से कम, अब, जहां भी इसका समाधान निकालना संभव हो, हमें निकालना चाहिए। पश्चिमी बॉर्डर का समाधान जल्दी निकलता नहीं दिखता। पर हमारे उत्तरी बॉर्डर का समाधान काफी हद तक संभव है अगर लोग सही नियत से बैठकर बात करें, तो हल निकलना संभव है, क्योंकि वहां हालात अलग हैं, बहुत अलग। यह एक गरीब देश है जहां लगभग चालीस करोड़ लोगों को अब भी भरपेट खाना नहीं मिलता। सेनाओं पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करना भी अपने आप में बड़ी समस्या है। तो इस खर्चे को कम करने का तरीका है। अगले दस साल में अगर हम अपनी सेनाओं को काफी छोटा और ज्यादा असरदार बनाने का प्लान करें, टेक्नोलॉजी से जुडी क्षमताओं की मदद से, तो मुझे लगता है कि यह आगे बढ़ने का सही तरीका है।



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