बुद्धिमानी
फ्रेंच क्रांति के तुरंत बाद की बात है, फ्रेंच लोगों ने सिर काटने वाली एक मशीन ‘गिलोटाईन’ बनाई। वह बहुत सफाई से सिर काटती थी।
जग्गी वासुदेव |
जब ऐसी मशीन बनी तो वे उसका उपयोग भी ज्यादा से ज्यादा करना चाहते थे। जब भी उन्हें कोई सिर दिखता तो वे उसे काट डालना चाहते थे। एक दिन वहां तीन लोगों को मारने के लिए लाया गया-एक वकील, एक पादरी और एक इंजीनियर। उन्होंने वकील को तख्ते पर लिटाया, उसके सिर पर टोप पहनाया और ब्लेड खींचा लेकिन वह नीचे नहीं गिरा।
किसी तकनीकी खराबी की वजह से। कानून के अनुसार उन्हें उसको तुरंत मारना था और ऐसा नहीं हो सका तो अब उसको प्रतीक्षा करने की यातना सहनी पड़ी, जिसका मतलब था कि वह उन पर अदालत में मुकदमा कर सकता था। तो उन्होंने उसे जाने दिया। फिर उन्होंने पादरी को तख्ते पर लिटाया और ब्लेड खींचा। फिर भी कुछ नहीं हुआ। अब उन्हें लगा कि यह कोई दैवी इशारा है, और उन्होंने उसे भी जाने दिया। अब बारी इंजीनियर की थी और वह बोला कि उसे टोप पहनाए बिना ही मारा जाए।
जब वह नीचे लेटा और उसने ऊपर देखा तो बोल पड़ा,‘‘अरे, मैं तुम्हें बताता हूं कि इसमें क्या समस्या है’? तो आजकल मनुष्य का तर्क इसी तरह से काम कर रहा है। यह उस बुद्धिमानी का विकृत रूप हो गया है, जो हमारे अंदर और सबके अंदर सृष्टि का स्रेत है। सब कुछ जिसे आप छूते हैं-खाने के लिए भोजन, सांस लेने की हवा, वह पृथ्वी जिस पर हम चलते हैं, और वह सारा आकाश जिसमें हम हैं-हर एक चीज में सृष्टिकर्ता का हाथ है, और इसे हर वह व्यक्ति स्पष्ट रूप से समझ सकता है, जो इस तरफ पर्याप्त ध्यान देता है।
एक मनुष्य जो सबसे बड़ा काम कर सकता है, वह है कि वह इस बुद्धिमानी के साथ लय में रहे और यह सुनिश्चित करे कि वह सृष्टिकर्ता के काम को विकृत न करे। ‘इस तरह क्या मैं अपना जीवन जी सकता हूं? क्या मैं जो चाहता हूं वह कर सकता हूं’? आप जो चाहें कर सकते हैं,वह भी सृष्टिकर्ता के काम को विकृत किए बिना इसके लिए आपको बस सृष्टिकर्ता के काम के साथ लय में होना होगा। यदि आप उसके साथ लय में नहीं हैं, तो आप अपने आप में एक अलग बुद्धिमान बन जाएंगे। सृष्टि में आपकी ऐसी बुद्धिमानी के लिए कोई स्थान नहीं है।
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