संचय

Last Updated 28 Nov 2019 12:22:16 AM IST

अपव्यय एवं अनावश्यक संग्रह से अनेक प्रकार की दुष्प्रवृत्तियां पनपती हैं? अपव्यय करने वाले मानो बदले में दुष्प्रवृत्तियां खरीदते हैं और उनसे अपना और दूसरों का असीम अहित करते हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

बुद्धिमानी की सही परख यही है कि जो भी कमाया जाए, उसका अनावश्यक संचय अथवा अपव्यय न हो। जो उपार्जन को सदाशयता में नहीं नियोजित करता वह घर में दुष्प्रवृत्तियां आमंत्रित करता है। लक्ष्मी उसी घर में बसती है, फलती है जहां उसका सदुपयोग हो।

आडम्बरयुक्त प्रदर्शन, फैशन परस्ती, विवाहों में अनावश्यक खर्च, जुआ जैसे दुर्व्यसन ऐसे ही घरों में पनपते हैं, जहां उपार्जन के उपयोग पर ध्यान नहीं दिया जाता, उपभोग पर नियंत्रण नहीं होता। भगवान की लानत किसी को बदले में लेनी हो तो धन को स्वयं अपने ऊपर अनाप-शनाप खर्च कर अथवा दूसरों पर अनावश्यक रूप से लुटाकर सहज ही आमंत्रित कर सकता है। ऐसे उदाहरण आज के भौतिकता प्रधान समाज में चारों ओर देखने को मिलते हैं। परिवारों में कलह और सामाजिक अपराधों की वृद्धि का एक प्रमुख कारण अपव्यय की प्रवृत्ति भी है।

समुद्र संचय नहीं करता, मेघ बनकर बरस जाता है तो बदले में नदियां दूना जल लेकर लौटती हैं। यदि वह भी कृपण हो संचय करने लगता तो नदियां सूख जाती, अकाल छा जाता और यदि अत्यधिक उदार हो घनघोर बरसने लगता तो अतिवृष्टि की विभीषिका आ जाती। अत: समन्वित नीति ही ठीक है। एक सेठ बहुत धनी था। उसके कई लड़के भी थे। परिवार बढ़ा पर साथ ही सबमें मनोमालिन्य, द्वेष एवं कलह रहने लगा। एक रात को लक्ष्मीजी ने सपना दिया कि मैं अब तुम्हारे घर से जा रही हूं। पर चाहो तो चलते समय का एक वरदान मांग लो।

सेठ ने कहा-‘भगवती आप प्रसन्न हैं तो मेरे घर का कलह दूर कर दें, फिर आप भले ही चली जाएं।’ लक्ष्मीजी ने कहा-‘मेरे जाने का कारण ही गृह कलह था। जिन घरों में परस्पर द्वेष रहता है, मैं वहां नहीं रहती। अब जबकि तुमने कलह दूर करने का वरदान मांग लिया और सब लोग शांतिपूर्वक रहोगे तब तो मुझे भी यहीं ठहरना पड़ेगा। सुमति वाले घरों को छोड़कर मैं कभी बाहर नहीं जाती। मैं अपना निर्णय वापस लेती हूं।’



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment