अहंकार
यह असंभव है। अहंकार का त्याग नहीं किया जा सकता क्योंकि अहंकार का कोई अस्तित्व नहीं है। अहंकार केवल एक विचार है: उसमें कोई सार नहीं है।
आचार्य रजनीश ओशो |
अहंकार एक तरह का अभाव है। अहंकार इसलिए है क्योंकि तुम स्वयं को नहीं जानते। जिस क्षण तुम स्वयं को जान लेते हो, कोई अहंकार नहीं पाओगे। तुम्हें बार-बार कहा गया है: ‘अपने अहंकार को मारो’-और यह वाक्य साफ तौर पर बेतुका है, क्योंकि जिस चीज का कोई अस्तित्व ही नहीं उसका त्याग भी नहीं किया जा सकता। किसी भी चीज का त्याग करने से पहले उसकी उपस्थिति का पक्का कर लेना चाहिए पर आरंभ से ही इसके विरोध में ना चले जाओ।
यदि तुम इसका विरोध करते हो तो तुम इसको गहराई से नहीं देख सकोगे। अहंकार के ढंगों को देखो, यह कैसे काम करता है, आखिर कैसे यह संचालित करता है। और तुम हैरान हो जाओगे; जितने गहरे तुम इसमें जाते हो यह उतना ही दिखाई नहीं पड़ता। ‘अहंकार’ वो है जिसे तुम एकत्रित करते हो; अहंकार तुम्हारी उपलब्धि है। अहंकार का समर्पण नहीं करना होता, उसका साक्षी बनना होता है। यही है ‘रिस्पेक्ट‘ का अर्थ। इसका अर्थ वह नहीं है जो प्रचलन में है: ‘आदर’। नहीं-रिस्पेक्ट का साधारण सा अर्थ है: ‘री-स्पेक्ट’, फिर से देखना। यही है इसका शाब्दिक अर्थ; इसमें आदर जैसे शब्द के लिए कोई जगह नहीं है।
‘स्पेक्ट’ का अर्थ है देखना; ‘री’ का अर्थ है दोबारा। यदि तुम री-स्पेक्ट करते हो, यदि तुम फिर से देखते हो और अपने अस्तित्व की गहराई में उतरते हो, तो तुम एक जगह पाओगे जहां से तुमने स्वयं को खोना और अहंकार को अर्जित करना आरंभ किया था। वो पल रोशनी का एक पल होता है, क्योंकि एक बार यदि तुमने देख लिया कि अहंकार क्या है, तब खेल समाप्त हो जाता है। तो मैं तुम्हें यह नहीं कह सकता कि अहंकार को गिरा दो क्योंकि इसका तो अर्थ हुआ कि मैंने तुम्हारे अहंकार की वास्तविकता को स्वीकार कर लिया।
और तुम उसे गिरा कैसे सकते हो-जब कि तुम ही वह हो। इस क्षण में तुम ही अहंकार हो। स्वयं को तो तुमने कहीं पीछे अतीत में छोड़ दिया है। यह समझने योग्य एक बहुत ही आधारभूत बात है-अहंकार अपने शिखर पर आ जाए, वह मजबूत हो जाए, और एक अखंडता हासिल कर ले-केवल तभी तुम उसे पिघला सकोगे। एक दुर्बल अहंकार को पिघलाया नहीं जा सकता। और यह एक समस्या बन जाता है।
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