ईश्वर विश्वास

Last Updated 15 Aug 2019 06:25:41 AM IST

ईश्वर विश्वास एक ऐसी चीज है कि इससे जीवन दर्शन को उच्चस्तरीय प्रेरणा मिलती है। संसार के सभी प्राणी ईश्वर के पुत्र हैं।


श्रीराम शर्मा आचार्य

अन्य प्राणियों की और मनुष्यों की स्थिति की तुलना करने पर जमीन-आसमान जैसा अंतर दिखाई पड़ता है। इसमें पक्षपात और अनीति का आक्षेप ईश्वर पर लगता है। जब सामान्य प्राणी अपनी संतान को समान स्नेह सहयोग देते हैं तो ईश्वर ने इतना अंतर किसलिए रखा? इस विभेद को समझने में प्रत्येक विवेक संपन्न व्यक्ति को भारी उलझन का सामना करना पड़ता है।

तत्वदर्शी विवेक बुद्धि इस विभेद के अंतर का कारण भली प्रकार स्पष्ट कर देती है। मनुष्य को अपने वरिष्ठ सहकारी जेष्ठ पुत्र के रूप में सृजा गया है। उसके कंधों पर सृष्टि को अधिक सुंदर, समुन्नत और सुसंस्कृत बनाने का उत्तरदायित्व सौंपा गया है। इसके लिए उसे विशिष्ट साधन उसी प्रयोजन के लिए अमानत के रूप में दिए गए हैं। मिनिस्टरों को सामान्य कर्मचारियों की तुलना में सरकार अधिक सुविधा साधन इसलिए देती है कि उनकी सहायता से वे अपने विशिष्ट उत्तरदायित्वों का निर्वाह सुविधापूर्वक कर सकें।

ये सुविधाएं उनके व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं वरन जनसेवा के लिए दी जाती हैं। बैंक के खजांची के हाथ में बहुत-सा पैसा रहता है। यह उनके निजी उपभोग के लिए नहीं, बल्कि बैंक प्रयोजन के लिए अमानत रूप में रहता है। निजी प्रयोजन के लिए तो क्या मिनिस्टर, क्या खजांची, सभी को सीमित सुविधा मिलती है। अत्यधिक साधन जो उनके हाथ में रहते हैं, उन्हें वे निर्दिष्ट कार्यों में ही खर्च कर सकते हैं।

मानवी कार्यों में उपभोग करने लगें तो यह दंडनीय अपराध होगा। ठीक इसी प्रकार मनुष्य के पास सामान्य प्राणियों को उपलब्ध शरीर निर्वाह भर के साधनों से अतिरिक्त जो कुछ भी श्रम, समय, बुद्धि, वैभव, धन, प्रभाव, प्रतिभा आदि की विभूतियां मिली हैं, वह सभी लोकोपयोगी प्रयोजनों के लिए मिली हुई सार्वजनिक संपत्ति हैं। शरीर रक्षा एवं पारिवारिक उत्तरदायित्वों के लिए औसत नागरिक स्तर का निर्वाह कर लेने के अतिरिक्त मनुष्य के पास जो कुछ बचता है, उसकी एक-एक बूंद उसे लोक कल्याण के लिए नियोजित करनी चाहिए। इसी में ईश्वरीय अनुदान और मानवी गरिमा की सार्थकता है।



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