आदमी जंगल है

Last Updated 13 Aug 2019 12:25:52 AM IST

धर्म के नाम पर खूब राजनीति चलती रही है, चलती है, और लगता है आदमी को देखते हुए कि चलती ही रहेगी।




आचार्य रजनीश ओशो

और जब धर्म के नाम पर राजनीति चलती है तो बड़ी सुविधा हो जाती है राजनीति को चलने में; क्योंकि हत्यारे सुंदर मुखौटे लगा लेते हैं। जितना बुरा काम करना हो उतना सुंदर नारा चाहिए, उतना ऊंचा झंडा चाहिए, रंगीन झंडा चाहिए! आड़ में छिपाना होगा न फिर! आदमी जंगली है, अभी तक आदमी नहीं हुआ! इसलिए कोई भी बहाना मिल जाए, उसका जंगलीपन बाहर निकल आता है।

सब बहाने हैं! एक बहाना हटा दो, दूसरा बहाना ले लेगा, मगर लड़ाई जारी रहेगी; क्योंकि आदमी बिना लड़े नहीं रह सकता! तीन हजार साल के इतिहास में आदमी ने पांच हजार युद्ध लड़े हैं। लगता है आदमी यहां जमीन पर युद्ध लड़ने को ही पैदा हुआ है! और कितने-कितने अच्छे नामों पर युद्ध लड़े गए इस्लाम खतरे में है, कि ईसाइयत खतरे में है, कि मातृभूमि खतरे में है, कि कम्युनिज्म खतरे में है, कि लोकतंत्र खतरे में है; खतरे ही खतरे हैं सबको! शांति के लिए युद्ध लड़े गए हैं, और मजा! हम कहते हैं, युद्ध लड़ेंगे तो शांति हो जाएगी।

यह तो ऐसा हुआ जैसे किसी को जीवन देने के लिए जहर पिलाओ! किसी को बचाने के लिए उसकी गर्दन काटो! लेकिन यह गणित जारी रहा। और ऐसा भी नहीं है कि एक मसला हल हुआ हो तो युद्ध समाप्त हुआ। एक मसला हल होता है, हम तत्क्षण दूसरा मसला खड़ा कर लेते हैं! हिंदुस्तान-पाकिस्तान बंटा था तो सोचा था कि चलो, अब हिंदू-मुस्लिम के दंगे न होंगे। हिंदू-मुस्लिम दंगे थोड़े क्षीण भी पड़े, लेकिन नये दंगे शुरू हो गए। हिंदुस्तान में इतनी भाषाएं हैं, भाषाओं के नाम पर दंगे शुरू हो गए; इतने प्रदेश हैं, प्रदेशों के नाम पर दंगे शुरू हो गए।

गुजराती और मराठी लड़ेंगे कि बंबई किसका हो! ये तो दोनों ही हिंदू थे। इनमें तो झगड़ा नहीं होना था। राम और कृष्ण से लेना-देना किसको है, बंबई किसका हो! छोटी-मोटी सीमाओं पर, कि नर्मदा का जल किस प्रांत को कितना मिले, इस पर झगड़े हो जाएंगे। और नर्मदा को दोनों पूजते हैं। दोनों नर्मदा को पवित्र मानते हैं। लेकिन जब बांटने का सवाल आ गया, तो झगड़े खड़े हो जाएंगे। कि एक तहसील इस प्रदेश में रहे कि उस प्रदेश में, कि एक जिला इस प्रदेश में रहे कि उस प्रदेश में। छुरेबाजी हो जाएगी! कि हिंदी भाषा हो राष्ट्र की भाषा, कि कोई और भाषा हो राष्ट्र की भाषा। बस, छुरे चल जाएंगे! तुम देखते हो, एक बहाना छूटता नहीं कि दूसरा बहाना मिल जाता है।



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