सत्य की ओर
कोई भी नर्क को समाप्त कर केवल स्वर्ग को नहीं रख सकता, मगर आप हर समय आनंदमय रह सकते हैं, इसलिए नहीं कि नर्क बनाने की संभावना आप के मन में घूम नहीं रही है, बल्कि अपनी विवेक शक्ति को ज्यादा मजबूत बनाकर।
![]() जग्गी वासुदेव |
आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि नर्क का फैलाव आप के अंदर कभी न हो। इसके प्रति सजग रह कर आप ऐसा कर सकते हैं वरना नर्क के फैलाव की संभावना तो हर समय है ही। ये सजग रहने की योग्यता भी एक सीमा तक ही होती है।
लेकिन अगर आप सारी निर्माण सामग्री को हटा दें, जो ऐसा या वैसा करने में सक्षम है, तो फिर ये बिल्कुल वैसा हो जाएगा कि आप किसी अंधेरे कमरे में बैठे हों, जहां न नीले प्रकाश की संभावना है, न ही सफेद की। लेकिन अब आप एक ऐसी दिशा में मुड़ गए हैं, जहां प्रकाश का कोई महत्त्व नहीं है। प्रकाश सिर्फ उसके लिए है, जो आंख खोल कर कहीं जाना चाहता है। जिसने आंखें बंद कर ली है और किसी दूसरी ही जगह है, उसके लिए प्रकाश से कोई फर्क नहीं पड़ता। उसके लिए तो प्रकाश अड़चन है।
तो असत्य से सत्य की ओर जाने का मतलब किसी भौगोलिक दूरी को पार करना नहीं है। यह तो एक अंडे के बाहरी खोल की तरह है-अभी आप खोल के बाहर हैं। अगर आप अंदर की ओर मुड़ना चाहते हैं तो आप अंडे के साथ टक, टक, टक करने लगते हैं। आप को लगता है कि जब ये टूट जाएगा तो आप अंदर चले जाएंगे, पर नहीं, चूजा बाहर आएगा पूरी बात यही है। जब आप इसे तोड़ लेते हैं तो कोई अंदर नहीं जाता, एक पूरी तरह से नई संभावना बाहर आती है। इसीलिए, योग में जो प्रतीक चिह्न है, वह सहस्त्रार है-एक हजार पंखुड़ियों वाला पुष्प, जो बाहर आ रहा है, खिल रहा है।
आप जब खोल को तोड़ते हैं तो आप ने जिसकी संभावना की कभी कल्पना भी नहीं की थी, वह चीज बाहर आती है। तो अगर आप इस आवरण को तोड़ना चाहते हैं तो आप कभी भी ये काम खुद नहीं कर पाएंगे क्योंकि आप खुद ही आवरण है। आप खुद को कैसे तोड़ पाएंगे? यह कर सकने के लिए आप के पास आवश्यक साहस नहीं है। मन भले कहे,‘चलो, इसे तोड़ते हैं, एक चूजा बाहर आएगा’। पर नहीं, आप में ये हिम्मत नहीं होगी कि आप इसे खुद तोड़ सकें।
Tweet![]() |