चैतन्य आत्मा
चैतन्य हम सभी हैं, लेकिन आत्मा का हमें कोई पता नहीं चलता। अगर चैतन्य ही आत्मा है तो हम सभी को पता चल जाना चाहिए। हम सब चैतन्य हैं।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
लेकिन, चैतन्य आत्मा है, इसका क्या अर्थ होगा? पहला अर्थ : इस जगत में, सिर्फ चैतन्य ही तुम्हारा अपना है। आत्मा का अर्थ होता है, अपना; शेष सब पराया है। शेष कितना ही अपना लगे, पराया है। मित्र हों, प्रियजन हों, परिवार के लोग हों, धन हो, यश, पद-प्रतिष्ठा हो, बड़ा साम्राज्य हो, वह सब जिसे तुम कहते हो मेरा, वहां धोखा है। क्योंकि वह सभी मृत्यु तुमसे छीन लेगी। मृत्यु कसौटी है, कौन अपना है, कौन पराया है। मृत्यु जिससे तुम्हें अलग कर दे, वह पराया था। और मृत्यु तुम्हें जिससे अलग न कर पाए, वह अपना था। आत्मा का अर्थ है : जो अपना है। लेकिन जैसे ही हम सोचते हैं अपना, वैसे ही दूसरा प्रवेश कर जाता है। अपने का मतलब ही होता है कोई दूसरा, जो अपना है।
तुम्हें यह खयाल ही नहीं आता कि तुम्हारे अतिरिक्त, तुम्हारा अपना कोई भी नहीं है; हो भी नहीं सकता। और जितनी देर तुम भटके रहोगे इस धारा में कि कोई दूसरा अपना है, उतने दिन व्यर्थ गए; उतना जीवन अकारण बीता। उतना समय तुमने सपने देखे। उतने समय में तुम जाग सकते थे, मोक्ष तुम्हारा होता; तुमने कचरा इकट्ठा किया। सिर्फ तुम ही तुम्हारे हो। यह पहला सूत्र है : मेरे अतिरिक्त मेरा कोई भी नहीं है। यह क्रांतिकारी सूत्र है, बड़ा समाज-विरोधी है। क्योंकि समाज जीता इसी आधार पर है कि दूसरे अपने हैं; जाति के लोग अपने हैं; देश के लोग अपने हैं-मेरा देश, मेरी जाति, मेरा धर्म, मेरा परिवार; मेरे का सारा खेल है। समाज जीता है ‘मेरे’ की धारणा पर। इसलिए धर्म समाज-विरोधी तत्व है।
धर्म समाज से छुटकारा है, दूसरे से छुटकारा है। और धर्म कहता है कि तुम्हारे अतिरिक्त तुम्हारा और कोई भी नहीं है। ऊपर से देखें तो यह बड़ा स्वार्थी वचन मालूम पड़ेगा; क्योंकि यह तो यह बात हुई कि हम ही अपने हैं, तो तत्क्षण हमें लगता है कि यह तो स्वार्थ की बात है। यह स्वार्थ की बात नहीं है। अगर यह तुम्हें खयाल में आ जाए, तो ही तुम्हारे जीवन में परार्थ और परमार्थ पैदा होगा। क्योंकि जो अभी आत्मा के भाव से ही नहीं भरा है, उसके जीवन में कोई परार्थ और कोई परमार्थ नहीं हो सकता। तुम कहते हो दूसरों को मेरा। लेकिन, ‘मेरा’ कहकर तुम करते क्या हो? मेरा कहकर तुम उन्हें चूसते हो। ‘मेरा’ तुम्हारा शोषण का हिस्सा है, फैलाव है। जिसको भी तुम ‘मेरा’ कहते हो, उसको तुम गुलाम बनाते हो।
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