नकारात्मक भाव
चारों ओर प्रकाश व्याप्त होने पर भी व्यक्ति अंधकार का रोना रो सकता है और अंधेरा-अंधेरा चीखता-चिल्लाता रह सकता है।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
इसके मात्र दो ही कारण हो सकते हैं। एक तो यह कि व्यक्ति किसी तंग कोठरी में चारों ओर से बंद दरवाजों और खिड़कियों के भीतर हो। उस स्थिति में बाहरी प्रकाश की, सूर्य देवता की एक भी किरण उस तक नहीं पहुंच सकती। दूसरा कारण व्यक्ति का दृष्टिहीन होना हो सकता है। इन दो कारणों को छोड़कर तीसरा कोई कारण नहीं है कि व्यक्ति अंधकार से दुखी और संतप्त रहे। मनुष्य के जीवन में भी इसी प्रकार दुख और वेदना का कोई अस्तित्व नहीं है। अंधकार एक नकारात्मक सत्ता है, प्रकाश का अभाव है।
यह प्रकाश कई बार परिस्थितियों के कारण भी लुप्त हो जाता है, किंतु वैसी स्थिति में परमात्मा ने मनुष्य को वैसी क्षमता दे रखी है कि वह उनका उपयोग कर प्रकाश के अभाव को दूर कर सके। लेकिन अंधकार को देख-देख कर ही जिसे भयभीत होते रहना हो, संतप्त और दुखी रहना हो, तो उसके लिए अंधकार से मुक्त होने का कोई उपाय नहीं है। दुख भी अंधकार के समान नकारात्मक भाव है। उसका कोई अस्तित्व नहीं है। व्यक्ति अपनी भ्रांतियों, गलतियों और त्रुटियों की तंग कोठरी में बंद होकर चारों ओर खिले हुए सुख और आनंद से वंचित रहे, तो इसमें परमात्मा का कोई दोष नहीं है। उसने तो सृष्टि में चारों ओर सुख, आनंद और प्रफुल्लता का प्रकाश बिखेर रखा है।
अपनी भ्रांतियों और त्रुटियों की दीवारों में, समझ और दर्शन के दरवाजों, खिड़कियों को बन्द कर कृत्रिम रूप से अंधकार पैदा किया जा सकता है। प्राय: जो दुखी, संतप्त, व्यथित और वेदनाकुल दिखाई देते हैं, उनकी पीड़ा के लिए बाहरी कारण नहीं, अपनी संकीर्णता की दीवारें उत्तरदायी हैं। परिस्थितिवश कोई समस्या या कठिनाई उत्पन्न हो जाए, तो उसके लिए भी शोध करना आवश्यक नहीं है। परमात्मा ने अंधकार को दूर भगाने की तरह मनुष्य को उन समस्याओं और कठिनाइयों को सुलझाने की क्षमता दे रखी है। वह उस क्षमता का उपयोग कर अपने लिये सुख और आनंद का मार्ग खोज सकता है और दुख रूपी अंधकार को दूर हटा सकता है। बहुधा लोग दुख और सुख के संबंध में दृष्टिभ्रम के शिकार होते हैं। परिस्थितियां कैसी भी हों, व्यक्ति यदि सुलझे और सुथरे दृष्टिकोण वाला हो, तो बुरे हालात में भी सुखी व आनंदित रह सकता है।
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