अध्यात्म मार्ग
सामान्य लोगों के बीच प्राय: यह भ्रम फैला हुआ है कि आध्यात्मवाद का लौकिक जीवन से कोई संबंध नहीं है।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
वह तो योगी तपस्वियों का क्षेत्र है, जो जीवन में दैवी वरदान प्राप्त करना चाहते है। जो सांसारिक जीवन-यापन करना चाहते हैं। घर-बार बसाकर रहना चाहते हैं, उनसे अध्यात्म का संबंध नहीं। इसी भ्रम के कारण बहुत से गृहस्थ भी, जो दैवी वरदान की लालसा के फेर में पड़ जाते हैं, अध्यात्म मार्ग पर चलने का प्रयत्न करते है।
किन्तु अध्यात्म का सही अर्थ न जानने के कारण थोड़ा-सा पूजा-पाठ कर लेने को ही अध्यात्म मान लेते हैं। यह बात सही है कि अध्यात्म मार्ग पर चलने ये उसकी साधना करने से दैवी वरदान भी मिलते है और ऋद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है। किन्तु वह उच्चस्तरीय सूक्ष्म-साधना का फल है। कुछ दिनों पूजा-पाठ करने अथवा जीवन भर यों ही कार्यक्रम के अंतर्गत पूजा करते रहने पर भी ऋषियों वाला ऐर्य प्राप्त नहीं हो सकता। उस स्तर की साधना कुछ भिन्न प्रकार की होती है। वह सर्वसामान्य लोगों के लिए संभव नहीं। उन्हें इस तपसाध्य अध्यात्म में न पड़कर अपने आवश्यक कर्त्तव्यों में ही आध्यात्मिक निष्ठा रखकर जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। उनके साधारण पूजा-पाठ का जो कि जीवन का एक अनिवार्य अंग होना चाहिए, अपनी तरह से लाभ मिलता रहेगा।
थोड़ी सी साधारण पूजा, उपासना करके जो जीवन में अलौकिक ऋद्धि-सिद्धि पाने की लालसा रखते हैं, वे किसी जुआरी की तरह नगण्य सा धन लगाकर बहुत अधिक लाभ उठाना चाहते हैं। बिना श्रम के मालामाल होना चाहते हैं। लोभी उपासकों की यह अनुचित आशा कभी भी पूरी नहीं हो सकती और हो वह भी सकता है कि इस लोभ के कारण उनकी अपनी उस सामान्य उपासना का भी कोई फल न मिले।
देवताओं का वरदान वस्तुत: इतना सस्ता नहीं होता, जितना कि लोगों ने समझ रखा है। वे मंदिर में जाकर हाथ जोड़ जाने या अक्षत-पुण्य जैसी तुच्छ वस्तुएं चढ़ा देने से प्रसन्न हो जायेंगे और अपने वरदान लुटाने लगेंगे-ऐसा सोचना अज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं है। सामान्य पूजा-पाठ का अपना जो पुरस्कार है, मिलेगा वही, उससे अधिक कुछ नहीं।
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