करुणा

Last Updated 28 Jun 2019 05:27:59 AM IST

एक दिन एक जैन मठ में सभी शिष्य अपने गुरु के चारों ओर इकट्ठे हुए। गुरु बोले,‘मैं जो कहानी सुना रहा हूं, उसे पूरे ध्यान से सुनो’।


जग्गी वासुदेव

फिर उन्होंने कहना शुरू किया.‘एक बार बुद्ध अपनी आंख बंद किए बैठे हुए थे, उन्हें किसी की आवाज सुनाई दी, ‘बचाओ, बचाओ’। उन्हें समझ आ गया कि ये आवाज किसी मनुष्य की थी, जो नर्क के किसी गड्ढे में था और पीड़ा भोग रहा था। बुद्ध को यह भी समझ में आया कि उसे ये दंड इसलिए दिया जा रहा था क्योंकि जब वह जिंदा था तब उसने बहुत सी हत्याएं और चोरियां की थीं। उन्हें सहानुभूति का एहसास हुआ और वे उसकी मदद करना चाहते थे। उन्होंने यह देखने का प्रयास किया कि क्या उस व्यक्ति ने अपनी जीवित अवस्था में कोई अच्छा काम किया था? उन्हें पता लगा कि उसने एक बार चलते हुए, इसका ध्यान रखा था कि एक मकड़ी पर उसका पैर न पड़ जाए। तो बुद्ध ने उस मकड़ी से उस व्यक्ति की मदद करने के लिए कहा। मकड़ी ने एक लंबा, मजबूत धागा नर्क के उस गड्ढे में भेजा, जिससे वह अपना जाला बुनती है। वह व्यक्ति उस धागे को पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगा। तब बाकी के लोग भी, जो वहां यातना भोग रहे थे, उसी धागे को पकड़ कर ऊपर चढ़ने लगे। तो उस व्यक्ति को चिंता हुई, ‘ये धागा मेरे लिए भेजा गया है, अगर इतने लोग इसे पकड़कर चढ़ेंगे तो धागा टूट जाएगा।

वह उन पर गुस्से से चिल्लाया। उसी पल वह धागा टूट गया और वह उस गड्ढे में फिर से गिर गया। उस व्यक्ति ने फिर चीखना शुरू किया, बचाओ, बचाओ, लेकिन इस बार बुद्ध ने उसकी तरफ कोई ध्यान नहीं दिया’। जैन गुरु  ने कहानी पूरी की और अपने शिष्यों से पूछा, ‘बताओ, इस कहानी में क्या दोष है’? एक शिष्य बोला,‘मकड़ी का धागा इतना मजबूत नहीं होता कि एक व्यक्ति को ऊपर ला सके’। दूसरे ने कहा,‘स्वर्ग और नर्क जैसी कोई चीज नहीं होती’। एक अन्य बोला,‘जब बुद्ध आंख बंद कर के बैठे और ध्यान कर रहे थे, तब उन्हें जरूर ही कोई और आवाज सुनाई दे रही होगी’। गुरु  मुस्कुराए और बोले,‘तुम सबने एक महत्त्वपूर्ण मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया’। फिर वे उठे और चले गए। जो सच्ची करु णा होती है, वह चयन नहीं करती। किसी क्षण कोई ये विचार करे कि मुझे इस व्यक्ति के लिए करु णामय होना चाहिए और फिर ऐसा सोचे कि वह दूसरा व्यक्ति मेरी करु णा का पात्र नहीं है, तो फिर ये करु णा नहीं है।



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