अस्तित्व

Last Updated 26 Jun 2019 05:54:24 AM IST

आध्यात्मिकता का मतलब किसी खास तरह का अभ्यास करना नहीं है। यह आपके अस्तित्व के होने का एक निश्चित तरीका है।


जग्गी वासुदेव

उस स्थिति तक पहुंचने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है। यह आपके घर के बगीचे की तरह है। अगर मिट्टी, सूर्य का प्रकाश और पौधे का तना एक निश्चित स्थिति में हैं, तो यह फूल नहीं देगा, आपको इसके लिए कुछ करना होगा। आपको कुछ खास बातों पर ध्यान देना होगा। अगर आप अपने शरीर, मन, भावों और ऊर्जा को परिपक्वता के एक निश्चित स्तर तक ले जाएंगे, तो आपके भीतर कुछ और खिल उठेगा-यही आध्यात्मिकता है। जब आपकी तार्किकता अपरिपक्व होती है, तो यह हर वस्तु पर संदेह करती है। जब आपकी तर्कबुद्धि परिपक्व हो जाती है, तो यह हर चीज को एक अलग ही प्रकाश में देखती है।

जब भी कोई आदमी कुछ ऐसा अनुभव कर पाता है, जो उसे खुद से बड़ा लगे, तो वह उसे भगवान समझने लगता है। ‘भगवान’ को लेकर सारी सोच यही है कि कुछ भी जो आपसे बड़ा हो। यह कोई इंसान या फिर प्रकृति का कोई आयाम भी हो सकता है। परंतु क्या यही आध्यात्मिकता है? नहीं, यह केवल जीवन है। जब मैं कहता हूं, ‘केवल जीवन’, तो मैं इसे छोटी बात कह कर, टालने का प्रयास नहीं कर रहा। यह सबसे बड़ी चीज है।

जब जीवन आपके लिए अभिभूत कर देने वाला, एक शक्तिशाली और आनंददायी अनुभव हो जाता है, तब आप जानना चाहते हैं कि इसे किसने रचा होगा। अगर आप सृष्टि के स्त्रोत या प्रक्रिया को जानना चाहते हैं, तो आपके लिए सृष्टि का सबसे अंतरंग हिस्सा तो आपका अपना शरीर है। इसमें फंसी हुआ एक सृष्टि है। आपको उसे भूलना नहीं चाहिए। अगर आप जानते हैं कि सृष्टि का वह स्त्रोत आपके भीतर छिपा है, तो आप आध्यात्मिक हैं। एक नास्तिक आध्यात्मिक नहीं हो सकता।

परंतु आपको यह समझना चाहिए कि एक आस्तिक भी आध्यात्मिक नहीं हो सकता है; क्योंकि नास्तिक और आस्तिक में कोई अंतर नहीं है। एक मानता है कि ईश्वर है और एक का मानना है कि ईश्वर नहीं है। दोनों ही किसी ऐसी बात के बारे में विश्वास रखते हैं, जिसके बारे में वे नहीं जानते। आप गंभीरतापूर्वक इसे स्वीकार करने को तैयार नहीं कि आपको नहीं पता-और यही आपकी समस्या है। इसलिए नास्तिक और आस्तिक में कोई भेद नहीं है।



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