जीवन-साधना
अपने जीवन की वास्तविकता को समझ सकें, तो ये ज्ञानयोग हो जाएगा।
![]() श्रीराम शर्मा आचार्य |
जब अपने फर्ज और ड्यूटी को सब कुछ मान लें, इस बात पर ध्यान नहीं दें कि दूसरा आदमी क्या कहता है और क्या सलाह देता है, तब इसको कर्मयोग कहेंगे। ये तीन बातों का ध्यान रखेंगे, तब आपका व्यक्तित्व निखरता हुआ चला जाएगा। जीवन की साधना के लिए इन बातों पर ध्यान रखना बहुत जरूरी है। हमारा जीवन पारस है, हमारा जीवन कल्पवृक्ष है, हमारा जीवन अमृत है, हमारा जीवन कामधेनु है। आप जो भी चाहें, इस जीवन को बना सकते हैं; लेकिन बनाना तो आपको ही पड़ेगा! आप ही बनाएंगे, तभी बनेगा। अपनी साधना आप कीजिए। अपने आपके विरु द्ध बगावत खड़ी कर दीजिए। अपने जन्म-जन्मान्तरों को तोड़-मरोड़ के फेंक दीजिए और जो अच्छाई आपके भीतर नहीं हैं, जो विशेषताएं अभी तक पैदा नहीं कर सके हैं, उन गुण, कर्म और स्वभाव के बारे में आप अभी तक अभावग्रस्त हैं, कृपा करके वे ठीक कीजिए, उनको सुधारिए। ये पुरु षार्थ कीजिए। बुराइयों को छोड़ने का पुरु षार्थ, अच्छाइयों को बढ़ाने का पुरुषार्थ।
पराक्रम अगर आप करेंगे, तो किस तरीके से? आगे बढ़ने के लिए दो कदम बढ़ाने पड़ते हैं। एक कदम के बाद दूसरा, दूसरे के बाद पहला। ऐसे ही आपको अपनी कमजोरियों और बुराइयों को दूर करने की जद्दोजहद करनी पड़ेगी और अपनी अच्छाइयों को प्राप्त करने के लिए पुरुषार्थ करना पड़ेगा। यह दो काम करते हुए चले जाएंगे, तो आपकी जीवन-साधना पूर्ण हो जाएगी। जीवन-साधना जिस हिसाब से आपकी पूर्ण होगी, आप देखेंगे सारा समाज आपका सहयोग करता है, अन्तरात्मा आपका सहयोग करता है; भगवान आपका सहयोग करते हैं, पात्रता जैसी ही विकसित होती चलेगी। इसलिए मैंने कल कहा था-आपके भीतर फूल जैसे खिलना शुरू हो जाएगा, वैसे ही आपके ऊपर भौंरे आने शुरू हो जाएंगे, तितलियां आनी शुरू हो जाएंगी; बच्चे आपको ललचाई आंखों से देखने लगेंगे। भगवान अपेक्षा करेंगे कि ये फूल हमारे गले में हैं, सिर पर होता, तो कैसा अच्छा होता? कृपा करके कीजिए, साधना कीजिए। साधना के चमत्कार देखिए। साधना से सिद्धि मिलती है-इस सिद्धांत को आपको जीवन में प्रयोग करके दिखाना है, तभी फायदा उठा सकेंगे, जिसके लिए कल्प-साधना में आप आए हैं।
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