पीढ़ी की गलती

Last Updated 14 Jun 2019 06:46:26 AM IST

हर पीढ़ी एक ही गलती करती है, इसका मतलब है कि वे कुछ नहीं सीख रहे। एक समाज के निर्माण में परिवार सबसे बुनियादी संस्था होती है, मगर इसका अर्थ यह नहीं है कि आपको बुनियादी ही बने रहना है।


जग्गी वासुदेव

आपका परिवार आपकी बायोलॉजिकल पहचान है। आपकी बायोलॉजी सबसे बुनियादी पहचान है। लेकिन जीवन भर खुद को अपनी बायलॉजिकल पहचान तक सीमित रखना एक अपराध है, जिसके कई नतीजे हो सकते हैं। इस देश ने लंबे समय तक इसके कारण बहुत चीजें भुगती हैं। परिवार एक बुनियादी पहचान है, जो हमें जन्म के साथ ही मिल जाती है। यह पहचान तब तक बहुत अच्छी है, जब तक आप बच्चे होते हैं।

एक लड़के के पुरुष बनने या लड़की के स्त्री बनने में लंबा समय लगता है, इस समय के दौरान परिवार में उसका पालन-पोषण सबसे महत्त्वपूर्ण होता है। लेकिन आपको उस पहचान से निकल कर आगे बढ़ना होता है, जो बहुत से लोग कभी नहीं करते और फिर कष्ट उठाते हैं। कई बार किसी के किसी खास जगह जन्म लेने की वजह से पूरे देश को भुगतना पड़ता है। पूरा का पूरा महाभारत महज एक पारिवारिक समस्या थी। आपने कहा कि हर पिता और पुत्र के बीच किसी तरह का रोष होता है। क्या जरूरी है कि यह रोष पिता और पुत्र के बीच में ही हो?

दरअसल, पिता और पुत्र की बात नहीं है, यह बस एक ही घर में रहने वाले दो पुरु षों की बात है। जब आप आठ-दस साल के होते हैं तो आपके पिता भगवान की तरह होते हैं। समस्या तब शुरू होती है, जब आप पंद्रह-सोलह साल के होते हैं। उस समय आप पुरु ष बनना चाहते हैं, और इसके लिए स्पेस नहीं होता क्योंकि आपके पिता ने अधिक स्पेस घेर रखा होता है। इस स्थिति में दोनों एक-दूसरे को पिता और पुत्र के रूप में नहीं पहचान रहे होते, वहां बस दो पुरुष होते हैं, जिनके लिए स्पेस काफी नहीं होता।

यह सिर्फ  इंसानी परिवारों में ही नहीं बल्कि दूसरे जीवों के जीवन में भी होता है, चाहे हाथी हो, भैंस हो, या और कोई और जीव। जब पिता और पुत्र में टकराव होता है, तो दोनों में से एक वह जगह छोड़कर चला जाता है। इसलिए यह समस्या पिता और पुत्र की नहीं है, यहां दो पुरु ष होते हैं जो एक ही जगह और एक ही स्त्री को, जिसे एक ‘मां’ कहता है और दूसरा ‘पत्नी’, को बांटने की कोशिश करते हैं।



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