कामना

Last Updated 11 Jun 2019 12:22:04 AM IST

कल्पना कामना नहीं है, मात्र एक खेल है। कामना तो बिलकुल अलग बात है। लेकिन तुम अपनी कल्पना को कामना पर आधारित कर सकते हो, तुम अपनी कामना को कल्पना द्वारा प्रक्षेपित कर सकते हो, तब वह बंधन हो जाएगी।


आचार्य रजनीश ओशो

कल्पना की ये विधियां केवल तभी सहयोगी हो सकती हैं यदि तुम उनके साथ खेलो।

यदि तुम गंभीर हो गए तो सारी बात ही चूक गए। लेकिन प्रश्नसंगत है। क्योंकि वास्तव में, तुम सोच ही नहीं सकते कि बिना कामना के कुछ किया जा सकता है। हम इतने परिणामोन्मुख हैं कि हर चीज को साधन बना लेते हैं। इसे स्मरण रखना चाहिए: ध्यान तो परम लीला है, कुछ पाने के लिए, साधन नहीं है, ध्यान बुद्धत्व पाने के लिए साधन नहीं है।

ध्यान से बुद्धत्व घटता है, लेकिन ध्यान उसके लिए साधन नहीं है। न ही ध्यान मोक्ष के लिए साधन है। मोक्ष उससे घटता है, लेकिन ध्यान उस के लिए साधन नहीं है। तुम ध्यान का किसी फल की प्राप्ति के लिए उपयोग नहीं कर सकते। यह बड़ी हैरानी की बात है कि जिन्होंने भी जाना है, वे सदियों से ध्यान के लिए ही ध्यान करने पर जोर देते रहे हैं। उससे कुछ पाने की कामना मत करो, उसका आनंद लो, उससे बाहर कोई लक्ष्य मत बनाओ। और बुद्धत्व उसका परिणाम होगा। स्मरण रखो, परिणाम, फल नहीं।

ध्यान कोई कारण नहीं है, लेकिन ध्यान में तुम गहरे डूबते हो तो बुद्धत्व घट जाता है। असल में, इस खेल में गहरे डूब जाना ही बुद्धत्व है। लेकिन मन हर चीज को कार्य बना लेता है। मन कहता है, कुछ करो क्योंकि उससे यह लाभ होगा। काल्पनिक या वास्तविक, मन को कुछ चाहिए जिससे सहारा मिल सके, जिसे मन प्रक्षेपित कर सके। केवल तभी मन चल सकता है। मन भविष्य के लिए वर्तमान में काम करता है।  भविष्य के लिए वर्तमान में काम करने को ही कामना कहते हैं। यदि तुम खेल रहे हो तो वह कोई कामना नहीं है, क्योंकि उसमें साधन भी यहीं है और साध्य भी यहीं है।

खेलते समय कोई भविष्य नहीं होता; तुम उसमें इतने लीन हो जाते हो कि भविष्य समाप्त हो जाता है। खेलते हुए बच्चों को देखो। उनके चेहरों को, उनकी आंखों को देखो। वे सुखी हैं, क्योंकि वे खेल रहे हैं। ध्यान में तुम पुन: एक बच्चे हो जाओगे। फिर कल्पना कामना नहीं रहती। तब तुम कल्पना के साथ खेल सकते हो, तब वह सुंदरतम घटनाओं में से एक हो जाती है। और यह खेल, यह पूरी तन्मयता से इस क्षण में होना ही बुद्धत्व है। जिस क्षण यह घटित होता है तुम रूपांतरित हो जाते हो। तो बुद्धत्व कभी भविष्य में नहीं होता, सदा वर्तमान में होता है; और वह कोई कार्य नहीं है जिसे करना है, वह तो खेल है जिसे खेलना है।



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment