अप्प दीपो भव:

Last Updated 10 Jun 2019 06:17:09 AM IST

भगवान तो वह है, जो सारे विश्व में छाया हुआ है, सारे नियमों की एक न्यायिक व्यवस्था बनाता है।


श्रीराम शर्मा आचार्य

वे एक तरह के नियम हैं, कायदा और कानून हैं, जिसको हम परम ब्रह्म कहते हैं। एक और भी ब्रह्म है? अंग्रेजी में इसको सुपरकान्शस (सुपर चेतन) कहते हैं। वेदांत की भाषा में इसको ‘स्व’ कहा गया है, आत्मा कहा गया है। आत्मा वा अरे द्रष्टव्य: श्रोतव्य: मन्तव्य: निदिध्यातिसव्य:। इसका अर्थ है कि ‘अरे लोगो! अपने आप को जानो, अपने आपको समझो।

अपने आपको सुधारो, अपने आपको ठीक करो।’ यह काम कैसे हो सकता है, भला? यह बतानेवाला कोई स्कूल है? स्कूल में तो इसकी पढ़ाई अब कहीं होती नहीं। तो फिर किससे पढ़ें? कौन बतावेगा? एक ही उपाय बचता है, अपने आप पढ़ा जाए। जाना जाए। इसमें अपने आपसे क्या मतलब? अपने आपसे मतलब है-सुपर चेतना से, जो हमारे भीतर है, जिसके बारे में शुरू में बताया गया है।

भीतर के अन्त:करण में व्यक्तित्व है, जिसमें कि गुण, कर्म और स्वभाव भरे पड़े हैं, जिसमें विश्वास और मान्यताएं भरी पड़ी हैं, जिसमें आदतें भरी पड़ी हैं। ये दोनोें तरह की हैं-भली और बुरी भी। बस इन आदतों को आपको ठीक करना है। अपनी मान्यताओं में, जिसमें घिनौनेपन घुसे बैठे हैं, उनमें आपको सुधार करना है, शुरू से लेकर अंत तक देख-भाल करनी है, उनको ठीक करना है। आपको आत्मदेव की उपासना करनी है। उपासना के बारे में जो हम कल कह रहे थे, वास्तव में वह आपका आत्मदेव है।

अपने आपकी उपासना किया कीजिए। अपने आपकी उपासना जो कर लेते हैं, वह अपने आप ही, अपनी साधना से ही, अपने ही दबाव से भगवान बना लेते हैं। मीरा ने अपने ही दबाव से पत्थर को गिरिधर गोपाल बना लिया और एकलव्य ने अपने दबाव से ही मिट्टी के पुतले को द्रोणाचार्य बना दिया था और रामकृष्ण परमहंस ने अपने ही व्यक्तित्व के दबाव से पत्थर को काली बना दिया था।

अपने आपका, व्यक्तित्व का उजागर होना और स्वच्छ, निर्मल होना-ये बहुत बड़ी बात है। इसके लिए आपको क्या करना चाहिए? चौबीसों घंटे आपको ध्यान रखना चाहिए। क्या ध्यान रखना चाहिए? यह कि हमारा जीवन किस तरीके से ठीक बन सकता है? आपको अपने कर्तव्यों पर ध्यान देना चाहिए। आपको अपने ज्ञान को परिष्कृत करना चाहिए और अपनी भक्ति-भावना का विकास करना चाहिए।



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