ईश्वर है या नहीं
नास्तिकवाद का कथन यह है कि-‘इस संसार में ईश्वर नाम की कोई वस्तु नहीं, क्योंकि उसका अस्तित्व प्रत्यक्ष उपकरणों से सिद्ध नहीं होता।’
श्रीराम शर्मा आचार्य |
अनीरवादियों की मान्यता है कि जो कुछ प्रत्यक्ष है, जो कुछ विज्ञान सम्मत है केवल वही सत्य है। चूंकि वैज्ञानिक आधार पर ईश्वर की सत्ता का प्रमाण नहीं मिलता इसलिए उसे क्यों मानें? इस प्रतिपादन पर विचार करते हुए हमें यह सोचना होगा कि अब तक जितना वैज्ञानिक विकास हुआ है क्या वह पूर्ण है? क्या उसने सृष्टि के समस्त रहस्यों का पता लगा लिया है? यदि विज्ञान को पूर्णता प्राप्त हो गई होती तो शोधकार्यों में दिन-रात माथापच्ची करने की वैज्ञानिकों को क्या आवश्यकता रह गई होती?
सच बात यह है कि विज्ञान का अभी अत्यल्प विकास हुआ है। कुछ समय पहले तक भाप, बिजली, पेट्रोल, एटम, ईथर आदि की शक्तियों को कौन जानता था, पर जैसे-जैसे विज्ञान में प्रौढ़ता आती गई, यह शक्तियां खोज निकाली गई। यह जड़ जगत की खोज है। चेतन जगत संबंधी खोज तो अभी प्रारम्भिक अवस्था में ही है। बाह्य मन और अंतर्मन की गति-विधियों को शोध से ही अभी आगे बढ़ सकना संभव नहीं हैं। यदि हम अधीर न हों तो आगे चलकर जब चेतन जगत के मूल-तत्वों पर विचार कर सकने की क्षमता मिलेगी तो आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व भी प्रमाणित होगा। ईश्वर अप्रमाणित नहीं है। हमारे साधन ही स्वल्प है, जिनके आधार पर अभी उस तत्व का प्रत्यक्षीकरण सम्भव नहीं हो पा रहा है।
पचास वर्ष पूर्व जब साम्यवादी विचारधारा का जन्म हुआ था तब वैज्ञानिक विकास बहुत स्वल्प मात्रा में हो पाया था। उन दिनों सृष्टि के अंतराल में काम करने वाली चेतन सत्ता का प्रमाण पा सकना अविकसित विज्ञान के लिए कठिन था। पर अब तो बादल बहुत कुछ साफ हो गए हैं। वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ मनीषियों के लिए चेतन सत्ता का प्रतिपादन कुछ कठिन नहीं रहा है।
आधुनिक विज्ञान वेत्ता ऐसी संभावना प्रकट करने लगे हैं कि निकट भविष्य में ईश्वर का अस्तित्व वैज्ञानिक आधार पर भी प्रमाणित हो सकेगा। जो आधार विज्ञान को अभी प्राप्त हो सके हैं, वे अपनी अपूर्णता के कारण आज ईश्वर का प्रतिपादन कर सकने में समर्थ भले ही न हों पर उसकी संभावना से इनकार कर सकना उनके लिए भी संभव नहीं है।
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