भगवान शिव

Last Updated 16 May 2019 03:26:54 AM IST

भगवान शिव का वाहन वृषभ है। वृषभ सौम्यता और कर्मठता का प्रतीक माना जाता है। तात्पर्य यह कि शिव का साहचर्य उन्हें मिलता है। जो स्वभाव से सरल और सौम्य होते हैं, जिनमें छल-छिद्र आदि विकार नहीं होते।


श्रीराम शर्मा आचार्य

साथ ही जिनमें आलस्य न होकर निरन्तर काम करने की दृढ़ता होती है। श्मशान में उनका निवास है अर्थात वे मृत्यु को कभी भूलते नहीं। भगवान की शक्ति और नियमों को मृत्यु की तरह अकाट्य मानकर चलने में मनुष्य की आध्यात्मिक वृत्तियां जागृत रहती हैं, जिससे वह लौकिक कर्त्तव्यों का पालन करते हुए भी अपने जीवन-लक्ष्य की ओर निष्काम भाव से चलता रह सकता है। मृत्यु को लोग भूले रहते हैं, इसलिए कर्म करते हैं।

इस महातत्त्व की उपासना का अर्थ अपने आपको बुरे कर्मो से बचाये रखने के लिए प्रकाश बनाए रखना होता है। इस तरह की जीवन-व्यवस्था व्यक्ति को असाधारण बनाती है। वह शक्ति शिव में पाई जाती है, शिव के उपासकों में भी वह वृत्तियां धुली हुई होनी चाहिए। यह प्रसंग भगवान शिव की आध्यात्मिक शक्तियों पर प्रकाश डालते हैं।

इनके साथ कथानक और घटनाएं भी जुड़ी हुई हैं, जो जीवन के आदशरे की व्याख्या करती हैं इनमें से गंगावतरण की कथा मुख्य है। गंगाजी विष्णुलोक से आती हैं। यह अवतरण महान आध्यात्मिक शक्ति के रूप में होता है। उसे संभालने का प्रश्न बड़ा विकट था। शिवजी को इसके उपयुक्त समझा गया और भगवती गंगा को उनकी जटाओं में आश्रय मिला। गंगाजी यहां ज्ञान की प्रचण्ड आध्यात्मिक शक्ति के रूप में अवतरित होती हैं।

लोक-कल्याण के लिए उसे धरती पर प्रवाहित करने की बात है ताकि अज्ञान से मरे हुए लोगों को जीवन दान मिल सके पर उस ज्ञान को धारण करना भी तो कठिन बात थी, जिसे शिव जैसा संकल्प-शक्ति वाला महापुरु ष ही धारण कर सकता है। अर्थात महान बौद्धिक क्रांतियों का सृजन भी कोई ऐसा व्यक्ति ही कर सकता है, जिसके जीवन में भगवान शिव के आदर्श समाये हुए हों वही ब्रह्म-ज्ञान को धारण कर उसे लोक हितार्थ प्रवाहित कर सकता है। गृहस्थ होकर भी पूर्ण योगी होना शिवजी के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटना है। सांसारिक व्यवस्था को चलाकर भी वे योगी रहते हैं। पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं।



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