भावनात्मक सुरक्षा

Last Updated 01 May 2019 12:26:44 AM IST

जिन्होंने अपना जीवन अपने हाथों में नहीं लिया है, उनका ध्यान हमेशा कोई न कोई चीज भटकाती रहती है। तो उपकरण कोई समस्या नहीं है, समस्या अपनी आदतों से मजबूर होकर कोई काम करना है।


जग्गी वासुदेव

हमें अपने युवाओं, बच्चों और बड़ों को भी समझाना होगा कि हमें  जीवन में किसी भी आदत से मजबूर नहीं होना है।

खाना खाना, बैठना, खड़े होना और काम करना, ये सभी जागरूकता के साथ होने चाहिए। हम ये सब जागरूकता के साथ करते हैं, तो हमारा यंत्रों का उपयोग करना भी एक जागरूक प्रक्रिया हो जाएगा। हमें जानकारियों के बारे में शिकायत नहीं करनी चाहिए। 100 साल पहले, अगर हमसे केवल 100 किमी. की दूरी पर भी कोई दुर्घटना घटती थी, या कुछ अच्छा घटता था, तो उसके बारे में हमें एक महीने बाद पता चलता था। आज दुनिया में क्या हो रहा है यह आप को उसी क्षण पता चल जाता है।

तो तकनीक अच्छी या खराब नहीं होती। इसमें अपना कोई गुण नहीं है-यह इस पर निर्भर करता है कि आप इसे कैसे उपयोग में लाते हैं? जो भी अन्य तकनीक इस्तेमाल करते हैं-टेलीफोन, मोबाइल फोन, कंप्यूटर या सोशल मीडिया-वे उतनी उन्नत या गूढ़ नहीं हैं, जितना कि हमारा मानव तंत्र-इस धरती पर सबसे उन्नत, सबसे बेहतर उपकरण।

आप को पहले इसकी तरफ ध्यान देना चाहिए वरना तकनीकों का जो अद्भुत उपहार हमें मिला है, वह अत्यंत तनावपूर्ण हो जाएगा। अधिकांश मनुष्यों में भावनाएं सबसे बड़ा आयाम होती हैं, इसलिए भावनात्मक सुरक्षा सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। अगर एक मनुष्य वास्तव में जागरूक बन जाए तो भावनाओं से फर्क नहीं पड़ता वरना भावनाएं एक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। इसलिए बचपन से ही बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा मिलनी चाहिए।

इसका अर्थ यह है कि उनके आसपास, चारों ओर एक प्यार भरा वातावरण होना चाहिए इसलिए बचपन से ही बच्चों को भावनात्मक सुरक्षा मिलनी चाहिए। इसका अर्थ यह है कि उनके आसपास, चारों ओर एक प्यार भरा वातावरण होना चाहिए सिर्फ  घर पर ही नहीं, बल्कि स्कूल में भी, गली में भी, जहां भी बच्चा जाए, उसे प्यार भरा, स्नेह भरा, स्वागतपूर्ण वातावरण मिलना चाहिए। यह सबसे महत्त्वपूर्ण बात है, जिसके बारे में हमें मानवता की खुशहाली के लिए ध्यान देना चाहिए।



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