भावों का तूफान
मुझे लगता है कि मैं हमेशा भावों के तूफान में घिरा रहता हूं, इससे बाहर कैसे निकलना? मैंने सिर्फ निरीक्षण करके देखा है लेकिन जैसे ही एक भाव चला जाता है, दूसरा आ खड़ा होता है।
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
हर उस भाव को जीयो जिसे तुम महसूस करते हो। वह तुम ही हो। घृणा से भरे, कुरूप, अपात्र जो भी हो, उसमें रहो। पहले भावों को एक मौका दो पूरी तरह चेतन मन में आने का। अभी जागरूकता के प्रयास में तुम उन्हें अवचेतन में दबा रहे हो। फिर तुम अपने रोजमर्रा के कामों में उलझ जाते हो और उन्हें जबरदस्ती दबा देते हो। उनसे निजात पाने का यह तरीका नहीं है। उन्हें बाहर आने दो; उन्हें जीयो। एक बार तुमने उनको जी लिया, उनकी पीड़ा झेली और उन्हें स्वीकार किया कि यह तुम हो, कि तुमने खुद को इस तरह नहीं बनाया है इसलिए तुम्हें खुद का धिक्कार नहीं करना चाहिए, कि तुमने खुद को इसी तरह पाया है..एक बार तुम उन्हें होशपूर्वक जी लेते हो बिना किसी दमन के, तुम आश्चर्यचकित होओगे कि वे अपने आप विलीन हो रहे हैं। और जब वे विदा होते हैं तब वह समय आ सकता है जब तुम साक्षी भाव से देखना शुरू करोगे। एक बार सब कुछ चेतन मन में आता है तो वह खो जाता है, और जब सिर्फ एक छाया रहती है तो वह समय होता है होशपूर्वक देखने का। अभी तो वह स्किजोफ्रेनिया, खंडित मन पैदा करेगा; बाद में वह बुद्धत्व पैदा करेगा।
जब भय हो तो कुछ करने के लिए क्यों पूछते हो? भयभीत होओ! द्वंद्व क्यों पैदा करना? क्या तुम जीवन को किसी तरह अपने ऊपर हावी नहीं होने दे सकते? जब प्रेम हावी हो जाता है तब क्या करना? प्रेमपूर्ण होओ। कुछ मत करो, प्रेम को हावी होने दो। जब भय होता है तब तूफान में कंपते हुए पत्ते की भांति कंपो, और वह सुंदर होगा। जब वह चला जाएगा, तुम शांत और निस्तरंग महसूस करोगे, ठीक वैसे ही जैसे कोई तेज तूफान गुजर जाता है तो सब कुछ शांत और नीरव हो जाता है। हमेशा किसी न किसी चीज से लड़ना क्यों? भय तुम्हारी बुद्धि का हिस्सा है; उसमें कुछ भी गलत नहीं है। भय केवल यही दिखाता है कि मृत्यु है; और हम इनसान यहां सिर्फ कुछ क्षणों के लिए हैं। वह कंपन कह रहा है कि हम सदा यहां नहीं रहोगे, हम शात रूप से यहां नहीं हैं; कुछ दिन और, और तुम विदा हो जाओगे। सच तो यह है कि भय के कारण मनुष्य धर्म की गहरी खोज करता है, अन्यथा कोई सवाल नहीं होता। कोई पशु धार्मिंक नहीं है क्योंकि किसी पशु में भय नहीं होता।
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