माटी

Last Updated 23 Jan 2019 02:42:10 AM IST

अगर ये शरीर उसी मिट्टी का बना है, जिस पर हम चलते हैं, तो फिर हमें ऐसा अनुभव क्यों नहीं होता? हम पूरी धरती को अपने हिस्से के रूप में कैसे अनुभव कर सकते हैं?


जग्गी वासुदेव

जब आपका जन्म हुआ था, आप का कद कितना था? अब कितना है? इस बीच उसके बढ़कर विकसित होने के लिए आपने क्या किया? आप कहेंगे, ‘उसे खाना दिया’। लेकिन आपको भोजन कहां से मिला? इसी माटी से। आपकी खाई हरेक चीज-साग-सब्जी और अनाज इसी माटी से ही तो तैयार हुए। अगर आप सामिष खाने वाले हैं तो आपकी खाई हरेक बकरी और मुर्गी भी तो इसी माटी से उपजी वस्तुओं को खाकर बड़ी हुई थी, और फिर आपकी भूख बुझाई थी।

जैसे भी हो, कुल मिलाकर मूल रूप से इसी माटी से आपका शरीर बना है। ज्यों-ज्यों आपके शरीर में माटी जुड़ती गई आपने उसे ‘मैं’ कहकर अपना लिया। एक लोटे में जल रखा है। क्या वह जल और आप एक हैं? आप कहेंगे ‘नहीं’। उस जल को लेकर पी लीजिए। जब वह आपके शरीर में मिल गया उसे क्या कहेंगे? अब वह ‘आप’ बन गया न? मतलब यह है कि आपके अनुभव की सीमा में जो आ जाता है, उसी को आप ‘मैं’ के रूप में महसूस करेंगे। जब तक वह बाहर है आप समझते हैं, वह अलग है और आप अलग हैं।

क्या आप महसूस करते हैं कि बाहर वाले पानी, माटी, हवा और ताप से ही आपका निर्माण हुआ है? जब वे आपका एक हिस्सा बन गए उन्हें अलग-अलग करके देखना संभव नहीं रहा। कुल मिलाकर उसे ‘मैं’ की पहचान दे दी आपने। आपके पुरखे कहां गए? चाहे उन्हें दफनाया गया हो या जलाया गया हो, वे इसी माटी में समा गए हैं। इस बात को न भूलें कि उन्हीं के ऊपर आप रोज कदम रखते हुए चलते हैं। आप भी आखिर में कहां जाने वाले हैं?

आपके मूल तत्व रूपी इसी माटी के ही अंदर। थोड़ी-सी माटी आपका स्वरूप बनकर सांस ले रही है। और कुछ माटी आपके बाग में ऊंचे पेड़ के रूप में बढ़कर खड़ी है और थोड़ी मोटी कुर्सी बन गई है जिस पर आप बैठे हैं। इसी माटी-चक्र की प्रक्रिया में आम, नीम, इमली, फूल, केंचुआ, मनुष्य अनेक और भिन्न-भिन्न अवतार ले रही है, और लेने वाली है। घड़े में रखें या छोटे कलश में, उसे आप पानी ही तो कहेंगे? यही दलील आप पर भी लागू होती है न? माना कि इकठ्ठा किए गए बरतन अलग-अलग हैं, लेकिन उनकी बनावट का मूल तत्व यही माटी है न?



Post You May Like..!!

Latest News

Entertainment