क्रोध

Last Updated 27 Jan 2018 06:26:45 AM IST

जब क्रोध आता है, तो तत्काल हमें ख्याल आता है उस आदमी का, जिसने क्रोध दिलवाया; उसका खयाल नहीं आता, जिसे क्रोध आया.


आचार्य रजनीश ओशो

जब भी हमें क्रोध पकड़ता है, तो हमारा ध्यान उस पर होता है, जिसने क्रोध शुरू करवाया है. अगर आप ऐसा ही ध्यान रखेंगे, तो क्रोध के कभी बाहर न हो सकेंगे. जब कोई क्रोध करवाए, तब उसे तत्काल भूल जाइए; और अब उसका स्मरण करिए, जिसको क्रोध हो रहा है. और ध्यान रखिए, जिसने क्रोध करवाया है, उसका आप कितना ही चिंतन करिए, आप उसमें कोई फर्क न करवा पाएंगे.

फर्क कुछ भी हो सकता है, तो उसमें हो सकता है जिसे क्रोध हुआ है. तो जब क्रोध पकड़े, लोभ पकड़े, काम वासना पकड़े-जब कुछ भी पकड़े-तो तत्काल ऑब्जेक्ट को छोड़ दें. क्रोध भीतर आ रहा है, तो चिल्लाएं, कूदें, फांदें, बकें. जो करना है, कमरा बंद कर लें. अपने पूरे पागलपन को पूरा अपने सामने करके देख लें.

और आपको पता तब चलता है, जब यह सब घटना जा चुकी होती है, नाटक समाप्त हो गया होता है. अगर क्रोध को पूरा देखना हो तो अकेले में करके ही पूरा देखा जा सकता है. तब कोई सीमा नहीं होती. इसलिए मैं वह जो पिलो मेडिटेशन, वह जो तकिए पर ध्यान करने की प्रक्रिया है, कुछ मित्रों को करवाता हूं, वह इसलिए कि तकिए पर पूरा किया जा सकता है.

तो अपने कमरे में बंद हो जाएं और अपने मूल, जो आपकी बीमारी है, उसको जब प्रकट होने का मौका हो, तब उसे प्रकट करें. इसको मेडिटेशन समझें, इसको ध्यान समझें. उसे पूरा निकालें. उसको आपके रोएं-रोएं में प्रकट होने दें.

चिल्लाएं, कूदें, फांदें, जो भी हो रहा है उसे होने दें. और पीछे से देखें, आपको हंसी भी आएगी. एक-दो दफे तो आपको थोड़ी-सी बेचैनी होगी, तीसरी दफे आप पूरी गति में आ जाएंगे और पूरे रस से कर पाएंगे. और जब आप पूरे रस से कर पाएंगे, तब आपको एक अद्भुत अनुभव होगा कि आप कर भी रहे होंगे बाहर और बीच में कोई चेतना खड़ी होकर देखने भी लगेगी.

दूसरे के साथ यह कभी होना मुश्किल है, या बहुत कठिन है. एकांत में यह सरलता से हो जाएगा. चारों तरफ क्रोध की लपटें जल रही होंगी, आप बीच में खड़े होकर अलग हो जाएंगे. और ऐसा किसी भी वृत्ति के साथ किया जा सकता है. वृत्ति से कोई फर्क नहीं पड़ता, प्रक्रिया एक ही होगी. बीमारी एक ही है, बस उसके नाम भर अलग हैं.



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