कामुकता
सेक्स एक प्राचीन बात है. इसमें कुछ भी गलत नहीं है, बस यह केवल बहुत पुराना हो चुका है. और अब जब आप अधिक परिपक्वता से आगे बढ़ते हैं, तो कुछ बड़ा, बेहतर और उत्कृष्ट तलाशते हैं.
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
जागरूकता बढ़ जाती है. सेक्स वह पहली चीज होती है, जो आपकी इस जागरूकता का शिकार होती है.
जीवन से सेक्स का खत्म होना बिल्कुल वैसा है जैसे कि अगर पेड़ अपनी जड़ खो दे तो शाखाएं हरी भरी नहीं रह पाएंगी. उस पर फूल कभी नहीं लगेंगे. वास्तविकता में वह पेड़ टहनी के बिना मर जाता है. कुछ दिनों बाद हो सकता है शायद यह वापस से खड़ा हो जाए तो कुछ और दिन पत्तियां हरी भरी रहेंगी और कुछ और दिन बाद फूल भी शायद पेड़ों पर लग आएं.
लेकिन मूल बात है कि जैसे ही हम पेड़ की जड़ काटते हैं, यह मर जाता है. आपका क्रोध, ईष्र्या, हिंसा, हीन भावना, श्रेष्ठ भावना, सभी प्रकार की तंत्रिकाएं और मानसिकताएं तो केवल शाखाएं हैं. ये सारी चीजें स्वयं ही खत्म हो जाएंगी, अगर एक बार आप इससे लड़े बिना सेक्स से परे चले जाते हैं. और यही मूलभूत अंतर है, जो मुझे अन्य सभी धर्मो से अलग करता है.
उन सब धर्मो की कोशिश सेक्स की भावना को खत्म करने की होती है. लेकिन मैं तुम्हें इसे खत्म करने को नहीं कह रहा हूं. तुम्हें और अधिक परिपक्व और चिंतनशील होने को कह रहा हूं. बिंदास रहें और इस पल के आनंद में डूबे रहें. सेक्स हमारी विरासत है. हम इसी की पैदाइश हैं. यह हमारे हरेक फाइबर और हर कोशिकाओं में है. इसे त्यागने का अर्थ केवल अनिच्छा से इसका दमन करना है.
इससे चीजें और अधिक विकृत और जटिल हो जाती हैं. अचेतावस्था तहखाने की तरह है, जहां आप वे सारी चीजें फेंक आते हैं, जो दुनिया को नहीं दिखाना चाहते. लेकिन अचेतावस्था में आप जो भी चीजें फेंकते हैं, वे समस्या को जन्म देती है. आप अपनी ही अचेतावस्था से डरना शुरू कर देते हैं. आप उन सबका दमन करते हैं जो आपको कुरूप बताई गई हैं, तो आपके चिंतनशील बनने की कोई संभावना नहीं है. प्रबुद्ध होने की भी नहीं. सेक्स को दमित नहीं किया जाना चाहिए.
सेक्स की समग्रता और उसके आनंद के साथ जीना चहिए और वो भी बिना किसी अपराधबोध के. और तब जो तुम कह रहे हो और जो ये संन्यासी कहते आ रहे हैं, एक दिन आएगा जब तुम इसके आनंद में खोए होंगे लेकिन अचानक से इसकी लालसा खत्म हो जाएगी.
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