कर्म
एक निजी कर्म होता है और एक सामूहिक कर्म होता है. एक परिवार, समुदाय, देश और मानव जाति के तौर पर हम आपस में कार्मिंक स्मृति को साझा करते हैं.
![]() जग्गी वासुदेव |
इसमें केवल आप ही शामिल हैं इसलिए अगर आप इच्छुक हों, तो यह काम झट से हो सकता है. हो सकता है, व्यक्तिगत तौर पर हमने कुछ न किया हो, लेकिन हमारा समाज कुछ काम तो कर रहा है. उसके कुछ नतीजे भी होंगे. कर्म को इनाम या सजा की तरह न समझें. ऐसा नहीं है. यह जीवन की बुनियाद है.
स्मृति के बिना जीवन नहीं होगा. अगर स्मृति न हो तो इंसान या अमीबा नहीं बन सकता. अगर जीवन को स्वयं को दोहराना है तो इसे हर हाल में मेमोरी चाहिए. कर्म जीवन की स्मृति है. इस शरीर के ऐसा रूप लेने का कारण यही है कि एक कोशीय जीव से लेकर, हर रूप के अंदर सामाजिक या सांसारिक हकीकत के कारण आपके साथ कुछ खास तरह के हालात हो सकते हैं.
लाखों हालात ऐसे पैदा होते हैं, जिसमें कितने लोग मारे जा रहे हैं, जबकि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया होता कि उन्हें वैसी मौत मिले. कई लोगों को अपने आसपास के हालात की वजह से दुख और कष्टों का सामना करना पड़ता है, जबकि वे उस हालात से किसी भी तरह नहीं जुड़े हैं. लेकिन वे उस हालात में हैं यह उनके कर्म हैं. आप कर्म को अपनी भूल की तरह देख रहे हैं.
‘क्या यह मेरी गलती है? मैंने तो ऐसा नहीं किया. फिर मेरा साथ ऐसा क्यों हुआ?’ देखिए, कर्म ऐसे नहीं होते. कर्म एक मेमोरी सिस्टम है. इस याद के बिना किसी तरह का कोई ढांचा नहीं होता. हर तरह का ढांचा, खासतौर पर जीवन का ढांचा इसीलिए दुहराया जा पाता है, क्योंकि हर जीवन के पास एक सुरक्षित याददाश्त होती है. मान लेते हैं कि मेरे साथ कुछ ऐसा घटा, जिसकी मुझे कोई याद नहीं है. लेकिन मेरे आस-पास जो समाज है उसे वह याद है. इस संसार के पास याददाश्त है, इसलिए ऐसे हालात घटित होते हैं.
इस समय, न्यूयॉर्क शहर में प्रदूषण है. मैंने तो यह नहीं किया, पर यह जहर मुझे भी पीना होगा. इस समय मैं भी कार्बन डाईऑक्साइड या मोनोऑक्साइड का जहर झेल रहा हूं. मैंने तो बहुत सारे पेड़ लगाए हैं. तो क्या किया जाए? न्यूयॉर्क आने पर यह प्रदूषण झेलना ही होगा. क्या इसकी कीमत मुझे भी चुकानी होगी? जी हां, यहां काफी समय बिताने पर इसकी कीमत चुकानी होगी.
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