देखने का ढंग
अगर आप हर चीज को उसी तरह समझते और महसूस करते हैं, जैसी वह है, तो लोग आपको दिव्यदर्शी या मिस्टिक कहते हैं.
जग्गी वासुदेव |
अगर आप जीवन को वैसे नहीं देखते, जैसा वह है तो इसका मतलब है कि आप मिस्टिक नहीं, मिस्टेक हैं.(गलती कर रहे हैं). आपके साथ जो कुछ भी घटित होता है, वह उस तरह से इसलिए घटित होता है, क्योंकि वह आपके मन के पर्दे पर उसी तरह से प्रतिबिंबित होता है. पतंजलि ने योग की बहुत ही आसान और टेक्निकल परिभाषा दी. जब लोगों ने पूछा, ‘योग क्या है?’
तो उन्होंने जवाब दिया, ‘चित्त वृत्ति निरोध:’. जिसका मतलब है कि जब मन के भीतर के सारे बदलाव खत्म हो जाएं तो वही योग है. तभी आप हर चीज को ठीक वैसा ही देखेंगे, जैसी वह है. अगर आप हर चीज को उसी रूप में देखें, जैसी वह है, तो आपको इस सृष्टि के साथ भी एकात्मकता दिखाई देगी. मन में हलचल और अतीत का प्रभाव नहीं होना चाहिए.
एक और समस्या हो सकती है, अगर आपके पास ऐसा कोई आइना है, जो चीजों को याद रखता हो फिर तो आप मुसीबत में पड़ जाएंगे.एक अच्छे आइने के बारे में पहली चीज यह है कि इसे पूरी तरह से सपाट होना चाहिए. दूसरी चीज इसे अपने भीतर कुछ नहीं रखना चाहिए. केवल तभी यह आपको चीजें वैसी दिखाएगा, जैसी वास्तव में वह हैं.
हम सब लोगों को भी यही करना होगा. अपने मन को सपाट व समतल करने के लिए थोड़ी कोशिश करनी होगी और देखना होगा कि इसमें अतीत का कुछ भी संजोया हुआ बाकी न रहे. जब यह किसी चीज को देखे तो यह बिलकुल वैसा ही देखे, जैसी वह है. फिलहाल होता यह है कि आप जब किसी वस्तु या व्यक्ति को देखते हैं तो आपके मन में अतीत की हजार चीजें चलने लगती हैं. अगर आप चीजों को सहज रूप से देखना सीख लें, तो आप पाएंगे कि आप हर चीज को बिलकुल वैसा ही देखेंगे, जैसी वह है.
इसके लिए किसी कोशिश की जरूरत नहीं है. भेदभाव की स्थिति में सत्य को जानना संभव नहीं है. हर चीज को सम्मान के साथ देखना शुरू कीजिए. यह तरीका भी काम करेगा. असली समस्या भेदभाव की है कि यह बेहतर है और वह कमतर है, यह अच्छा है और वह बुरा है. इस स्थिति में तो आप कभी अस्तित्व की असलियत को जान ही नहीं पाएंगे. आपका मन भी बंट जाएगा. एक बार अगर आपका मन विभेदकारी हो गया तो यह स्थिति एक टूटे हुए आइने सी होगी.
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