स्वीकार-भाव

Last Updated 22 Dec 2017 01:59:53 AM IST

हरपल को स्वीकार करना जरूरी है. स्वीकृति आपको हर चीज से मुक्त कर देगी. यही रास्ता है. स्वीकृति सहनशीलता से कहीं ज्यादा बेहतर है.


जग्गी वासुदेव

लेकिन अगर आप जागरूक नहीं हैं, अगर स्वीकार करना आपके लिए संभव नहीं है. और आप हर छोटी-छोटी चीज के लिए चिड़चिड़ा जाते हैं तो आपको कम-से-कम सहनशीलता तो विकसित कर ही लेनी चाहिए. आपको पता ही है, जीसस ने कहा था कि अगर कोई आपको एक गाल पर थप्पड़ मारे, तो दूसरा गाल भी उसके आगे कर दो.

यह बात उन्होंने केवल अपने बारह शिष्यों से कही थी, आम जनता से नहीं. जनता को कई बार पलटकर मारना भी पड़ जाता है. जो लोग वाकई में आध्यात्मिक होना चाहते हैं, उनसे उन्होंने कहा कि अगर वे पलटकर मारेंगे, तो वह उनकी आध्यात्मिकता का अंत होगा. गौतम ने तो इससे भी बढ़ कर शिक्षा दी थी.

उस दौर में उत्तर भारत में पिंडारियों का बड़ा आतंक था. डाका डालना ही उनका पेशा था. पैदल या बैलगाड़ी से यात्रा करने वालों के लिए ये पिंडारी एक बड़ा खतरा माने जाते थे. आमतौर पर वे हिन्दू साधु-संन्यासियों को छोड़ देते थे, लेकिन बौद्ध भिक्षुकों को वे नहीं बख्शते थे, क्योंकि वे उनके लिए नये थे. गौतम ने कहा ‘मान लो, आपको जंगल में पकड़ लिया जाए. अगर डाकू दुधारी तलवार से आपके हाथ भी काट दें, तो भी आपके मन में जरा भी प्रतिरोध नहीं आना चाहिए.’ इस तरह उन्होंने भी सहनशीलता की बात की.

अगर आप वास्तव में यह देख पाते हैं कि अपने कर्मों की वजह से ही आपको जीवन में कष्ट मिल रहे हैं तो ऐसे शख्स को जो आपके हाथ काट रहा है, बुरा-भला कह कर अपने कर्म को और बढ़ाने का क्या मतलब है? आज आप जो भी हैं, जैसे भी हैं, उसके लिए आप स्वयं और आपके कर्म जिम्मेदार हैं. ऐसे में अगर कोई चीज सुविधाजनक नहीं है, तो उसके बारे में शिकायत करने का क्या लाभ! कुछ चीजों के लिए हो सकता है कि आप यह कहने के लिए तैयार हों कि ये आपके कर्म हैं, लेकिन बाकी चीजों का क्या! अगर स्वीकार करने की क्षमता है तो कुछ भी संभव है.

यही सबसे अच्छा रास्ता है. लेकिन जब लोग इतने सजग नहीं होते कि हर पल को स्वीकार कर सकें, तो विकल्प देने पड़ते हैं. स्वीकार कर लेने की क्षमता का एक बेहद कमजोर विकल्प है सहनशीलता, लेकिन स्वीकार करने की क्षमता नहीं है, तो कम से कम आपके पास सहनशीलता तो होनी ही चाहिए.



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