आत्मज्ञान

Last Updated 21 Dec 2017 06:00:20 AM IST

अध्यात्म शास्त्र में पग-पग पर एक उद्बोधन- निर्देशन पूरा जोर देकर दिया जाता है कि ‘अपने को जानो, उसे उठाओ.’ ‘आत्मानं विद्धि’, ‘आत्मावा अरे ज्ञातव्य’ जैसे सूत्र संकेतों का आत्म क्षेत्र के प्रवेशार्थी को ध्यान पूर्वक मनन-चिंतन करना पड़ता है.


श्रीराम शर्मा आचार्य

मनुष्य के लिए खोज का सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रश्न कौन-सा हो सकता है, श्वेताश्वेतरोपनिषद् का ऋषि स्पष्ट करता है-‘किं कारणं ब्रह्मा कुत: स्मजाता जीवाम् केन च सम्प्रतिष्ठा:. अधिष्ठिता: केन सुखेतरेषु वर्तामहेब्रह्मा विदो व्यवस्थाम्..’ अर्थात्-हे वेदज्ञ महषिर्यों! इस जगत् का प्रधार कारण ‘ब्रह्म’ कौन है? हम सभी किससे उत्पन्न हुए हैं, किससे जी रहे हैं और किसमें प्रतिष्ठित हैं? किसके अधीन रहकर सुख-दु:ख का अनुभव करते हैं. इन प्रश्नों के उत्तर अर्थात् आत्मज्ञान की आवश्यकता अनुभव की जा सके तो सर्वप्रथम विचार करना होगा कि हम कौन हैं? क्यों जी रहे हैं?

आत्म्वेत्ता ऋषियों ने गंभीर चिंतन से जो निष्कर्ष निकाले थे, वे आत्मानुसंधान में प्रवृत्त होने के इच्छुक जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन करने में सक्षम हैं. आत्मा क्या है? परमात्म सत्ता का एक छोटा सा अंश. अणु की अपनी स्वतंत्र सत्ता लगती भर है, पर जिस ऊर्जा आवेश के कारण उसका अस्तित्व बना है तथा क्रियाकलाप चल रहा है, वह व्यापक ऊर्जा तत्व से भिन्न नहीं है.

अलग-अलग बर्तनों में आकाश की कितनी ही स्वतंत्र सत्ताएं दिखाई पड़ती हैं, पर तथ्यत: उनका अस्तित्व निखिल आकाशीय सत्ता से भिन्न नहीं है. पानी में अनेकों बुलबुले उठते और विलीन होते रहते हैं. बहती धारा में कितने ही भंवर पड़ते हैं. दिखने में बुलबुले और भंवर अपना स्वतंत्र अस्तित्व प्रकट कर रहे होते हैं, पर यथार्थ में वे प्रवाहमान जलधारा की सामयिक हलचलें मात्र हैं.

जीवात्मा की स्वतंत्र सत्ता दीखती भर है, पर उसका अस्तित्व एवं स्वरूप विराट् चेतना का ही एक अंश है. इस निष्कर्ष के आधार पर ही अध्यात्मवेत्ताओं ने उद्घोष किया कि ‘हम विश्व चेतना के एक अंश मात्र हैं. सबका उत्थान अपना उत्थान और सबका पतन अपना पतन मानकर चलने से सीमित परिधि में सुखी रहने की क्षुद्रता घटती है.

मनुष्य अपने को विराट् समाज का अभिन्न अंग मानने लगता है. सामूहिक हित सोचने और सामूहिक गतिविधियां अपनाने में ही उसे आनंद आता है.’ आत्मज्ञान से आत्मविस्तार होता है, और यही काम्य है.



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