भय में जीना
तुम्हारे सारे भय तादात्म्य की उपज हैं. तुम किसी स्त्री से प्रेम करते हो और प्रेम के साथ, उसी पैकेज में भय आता है: कि वह तुम्हें छोड़ देगी.
आचार्य रजनीश ओशो |
वह पहले भी किसी को छोड़ चुकी है और फिर तुम्हारे साथ आई है. ऐसा घटा है; शायद वह तुहारे साथ ऐसा ही करे. भय लगता है, पेट में गांठें पैदा होती हैं.
तुम अत्यधिक जुड़े हुए हो. एक छोटी सी बात तुम्हारी समझ में नहीं आती कि तुम इस दुनिया में अकेले आए हो, तुम यहां पर कल भी थे, बिना इस स्त्री के, भले-चंगे, पेट में किसी गांठ के बगैर और कल को अगर यह स्त्री चली जाए तो गांठों की जरूरत क्या है? तुम जानते हो उसके बिना कैसे जीना और तुम उसके बगैर मजे से जीओगे.
यह भय कि कल चीजें बदल जाएंगीं, कोई मर जाएगा, तुम्हारा दिवाला निकल जाएगा, तुम्हारी नौकरी छिन जाएगी. हजारों चीजें ऐसी हैं, जो बदल सकती हैं. तुम ज्यादा से ज्यादा भयों के नीचे दब जाते हो. और उनमें से कोई भी असली कारण नहीं है. क्योंकि कल भी तुम इन्हीं भय से भरे थे, व्यर्थ ही. चीजें बदल गई हों लेकिन तुम अभी भी जिंदा हो. मनुष्य के पास बहुत बड़ी क्षमता है किसी भी स्थिति से तालमेल करने की. कहते हैं, केवल मनुष्य और तिलचट्टे में तालमेल करने की अपरिसीम क्षमता है. इसीलिए जहां आदमी मिलेगा वहां तिलचट्टा मिलेगा.
और जहां तिलचट्टा मिलेगा वहां आदमी मिलेगा. वे एक साथ होते हैं, उनमें समानता है. सुदूर क्षेत्रों में जैसे कि उत्तर धृव या दक्षिण ध्रुव. जब मनुष्य इन स्थानों में गया, उसे अचानक पता चला कि वह अपने साथ तिलचट्टे लाया है. और वे पूरी तरह से स्वस्थ और जीवित थे और प्रजनन कर रहे थे. अगर तुम पृथ्वी पर नजर डालो तो देखोगे कि मनुष्य हजार तरह की विभिन्न भौगोलिक परिस्थितियों में, मौसमों में, राजनैतिक और सामाजिक स्थितियों में, धार्मिंक वातावरणों में जीता है; लेकिन वह जी लेता है.
और वह सदियों से जीता चला आया है, चीजें बदल जाती हैं, लेकिन वह स्वयं को समायोजित करता चला जाता है. डरने की कोई जरूरत नहीं है. यह दुनिया भी डूब जाए तो क्या? क्या तुम सोचते हो कि तुम एक द्वीप पर खड़े रहोगे और दुनिया विनष्ट हो जाएगी सिर्फ तुम्हें छोड़कर? फिक्र मत करो, कम-से-कम तुम्हारे साथ कुछ तिलचट्टे तो होंगे ही. अगर दुनिया खत्म हो जाए तो समस्या क्या है? मुझसे यह कई बार पूछा गया है. लेकिन समस्या क्या है? अगर वह खत्म होती है तो होती है. उसमें कोई समस्या नहीं है.
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