बुद्धिमानी
ऐसा क्यों होता है कि जिस चीज को आप पाना चाहते हैं, एक पल में तो आप उसे बहुत करीब महसूस करते हैं और अगले ही पल वह दूर महसूस होने लगता है?
जग्गी वासुदेव |
इसकी वजह है आज की दुनिया में हमारे मन को ठीक से संचालित करने पर कोई काम ही नहीं हुआ है. अपनी शिक्षा व्यवस्था से लेकर अपने मन को सिर्फ सूचनाओं से भर रहे हैं. अगर आपके पास दूसरों की तुलना में जरा भी ज्यादा जानकारी हुई तो लोग आपको स्मार्ट समझते हैं.
अगर आप बेवजह अपने सिर पर बहुत सारा सामान लेकर चलते हैं तो आमतौर पर लोगों को आपको मूर्ख समझना चाहिए, लेकिन इस मामले में, यानी मन में बेवजह (जानकारी के रूप में) ढेर सारी चीजें ढोने पर लोग आपको स्मार्ट समझते हैं.
आज की दुनिया में तो आपको किसी भी चीज की जानकारी के लिए बस अपने फोन में झांकना है और फिर अपने पास से गुजरते किसी आदमी को आकाशगंगा जैसी चीजों के बारे में कुछ बता देना है.
सामने वाला खुद ही बोल पड़ेगा, ‘अरे आप तो बेहद बुद्धिमान हैं!’ लेकिन दुर्भाग्य से यहां आप नहीं, बल्कि आपका फोन बुद्धिमान है. आज जानकारी को बुद्धिमानी समझा जाता है जिसे कोई भी मूर्ख हासिल कर सकता है. आप कोई किताब खोल लीजिए और पढ़ लीजिए. लंबे समय तक लोग सोचते रहे कि किताब पढ़ना ही धर्म है.
यहां तक कि आज भी कई लोग ऐसा ही सोचते हैं. अगर कोई भी व्यक्ति साक्षर है तो वह किताब पढ़ सकता है. जब साक्षरता दुर्लभ बात थी, पूरे गांव में सिर्फ एक ही व्यक्ति पढ़-लिख सकता था, जिसे देख कर लोग उस समय हैरत में पड़ जाते थे कि यह इंसान सिर्फ एक किताब में देखकर इतनी सारी बातें बता सकता है, लेकिन जब वे लोग उस किताब में देखते थे तो उनको कुछ समझ नहीं आता था.
उन्हें यह चीज बड़ी अद्भुत लगती थी. अब हम मौजूदा दौर की ओर लौटते हैं, आज हमारी शिक्षा व्यवस्था में जिस चीज की कमी खल रही है, वो यह है कि यह हमारे मन की प्रकृति पर ध्यान नहीं दिया जाता और यह नहीं सिखाया जाता कि कैसे हमें इसे संभालना चाहिए, कौन से वे बुनियादी अनुशासन हैं जिसे हमें अपने भीतर लाने की कोशिश करनी चाहिए. यही वजह है कि आप जिस चीज के लिए कोशिश कर रहे होते हैं, एक पल में वह आपको नजदीक व वास्तविक लगने लगती है, लेकिन कुछ देर बाद ही वह फिर एक खोखले वादे सा लगने लगती है.
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