सपने
क्या आपने किसी समय कुछ ऐसे सपने देखे थे, जो समय के साथ धुंधले पड़ गए? जानते हैं कि कैसे समय के साथ-साथ हम अपने सपनों को खोते जाते हैं और सपनों को साकार करने के लिए हमें क्या करना होगा.
धर्माचार्य जग्गी वासुदेव |
अठारह वर्ष की आयु में आपने जो सपने देखे थे, वे सब विराट थे. पच्चीस साल की उम्र में केवल जीवनयापन के लिए आवश्यक सपने जारी रहे. तीस तक पहुंचते-पहुंचते सारे सपने सूखकर, ‘जीवन में बड़ी-सी कोई उपलब्धि न मिले तो भी ठीक है, अपने पास जो कुछ है बरकरार रहे यही बहुत है.’
यों अपने आपको तसल्ली देने लगे. कारण पूछने पर बताएंगे, ‘उम्र के बढ़ने के साथ जीवन को समझने की व्यवहार-बुद्धि विकसित हो गई है.’
असल में सपना देखने के लिए भी मन में साहस होना चाहिए. आप वह साहस खो चुके हैं. आप किसी भी सपने को, ‘वह पूरा होगा या नहीं’ इसी संदेह-दृष्टि के साथ देखते हैं. इसलिए उन्हें पाने के आपके प्रयत्न भी अधूरे रह जाते हैं.
चीन में एक जेन गुरु थे. उन्होंने अपने शिष्य से कहा, ‘मैं स्नान करना चाहता हूं, हौज में पानी भरो.’ शिष्य ने कुएं से काठ की बाल्टियों में पानी भरा, बाल्टियों को कंधे पर ढोते हुए ले जाकर हौज में उड़ेला. बाल्टी के निचले भाग में बचे हुए पानी को नीचे डालकर अगली पारी का जल लाने के लिए कुएं के पास गया. गुरु ने हाथ में एक बेंत ली और शिष्य की पीठ पर रसीद कर दी.
उसे डांटा, ‘क्यों पानी को बेकार फेंक दिया? पौधों को दे सकते थे न?’ पीठ पर दर्द और आंखों में आंसू के साथ शिष्य ने सफाई दी, ‘जो पानी जमीन पर डाला गया था, वह प्याला-भर नहीं होगा. इतना-सा पानी सींचने पर क्या कोई पौधा आसमान तक ऊंचा हो सकता है?’ ‘मूर्ख कहीं का! क्या मैंने पौधे के बढ़ने के लिए यह बात कही? अरे, मैं तुम्हारे विकास के लिए कह रहा था.
आधी बूंद भर पानी होने पर भी उसे तुच्छ नहीं मानना है, उसे बेकार न किया करो, तभी तुम्हारा भी विकास होगा.’ जेन गुरु ने जो बात कही, वह केवल अपने चेले के लिए नहीं, आपके लिए भी है. अगर आप अपना सपना साकार करना चाहते हैं तो छोटे-से-छोटे अवसर की भी उपेक्षा किए बिना उसका उपयोग करने के लिए तैयार रहना चाहिए. जिन लोगों को अपने सपने को खाद डालकर उसे साकार करना आता है, वही वास्तव में जीते हैं. बाकी सब इस दुनिया में बस, रहते हैं.
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