विचार
याद रखना चाहिए कि अगर कोई बाहरी चीज हमें तकलीफ नहीं देती है, तो हम खुद एक दूसरे को तकलीफ देना शुरू कर देते हैं.
जग्गी वासुदेव |
हम अपने परिवार, समाज, शहर या फिर देश के अंदर एक-दूसरे को कई तरीकों से परेशान करना शुरू कर देंगे. हम एक-दूसरे के बारे में गलत तरीके से राय कायम करने लगेंगे. बेशक अगर आप पर कोई ऐसी राय कायम करे, तो आपको अच्छा नहीं लगेगा, लेकिन फिर भी अपने आस-पास के हर इंसान के बारे में राय कायम करते रहेंगे. अगर आपको अपने आस-पास के हर इंसान में बहुत सारी कमियां दिखती हैं, तो दरअसल, आप ही पूरी तरह गलत हैं. क्योंकि आपने जीवन की प्रकृति को नहीं समझा है. आप परफेक्शन की तलाश कर रहे हैं.
लेकिन परफेक्शन का मतलब मृत्यु है. इंसान सिर्फ अपनी मृत्यु में ही परफेक्ट हो सकता है. जीवन में आप कोशिश कर रहे हैं या नहीं, आप ईमानदार हैं या नहीं, बस यही मायने रखता है. जीवन के सन्दर्भ में परफेक्ट होने, न होने का सवाल कभी नहीं होता. एक बार ऐसा हुआ कि एक महिला मांस की दुकान पर गई. वहां उसने दर्जनों मुर्गे लटकते हुए देखे. वह गई, एक मुर्गे का पैर उठाया, सूंघा. फिर दूसरा पैर उठाकर सूंघा. इसके बाद उसने पंख उठाकर सूंघा. इस तरह वह एक के बाद एक मुर्गे के साथ ऐसा करती रही. तभी कसाई उसके पास आया और उसके कंधे पर थपकी देकर बोला, ‘मैडम, क्या आप खुद ऐसे टेस्ट में पास हो सकती हैं?’ इसलिए आप सूंघते हुए मत घूमिए कि किसमें क्या बुराई है.
सबमें थोड़ी-बहुत बदबू है. हर पेड़-पौधे की जड़ कहीं-न-कहीं कीचड़ में है. सवाल बस इसका है कि क्या उसमें खुशबूदार फूल आते हैं? अगर उसकी जड़ें साफ होंगी, तो उसमें कुछ भी अच्छा नहीं खिलेगा. जीवन की प्रकृति यही है. धरती पर हर चीज रूपांतरण की प्रक्रिया में है. क्या आप रूपांतरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं?
सबसे बड़ा सवाल यही है. अगर आपके इस सवाल का जवाब हां है, तो और कोई चीज मायने नहीं रखती. अगर आप एक बंद तालाब हैं, हर दिन किसी-न-किसी चीज में उलझे रहते हैं और चालाकी से अपने उलझने की वजहें खोजते रहते हैं, तो आपका जीवन व्यर्थ है. कोई दूसरा जीव आपके मुकाबले अच्छी तरह से जिएगा. एक कपटी इंसान से कहीं अधिक खुशहाल एक झींगुर हो सकता है. अगर आप किसी दूसरे जीव से बेहतर तरीके से नहीं जी सकते, तो आपको दुनिया में रहने का कोई हक नहीं है.
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