आध्यात्मिकता

Last Updated 25 Aug 2017 05:47:08 AM IST

आप पहले ही इस दुनिया में रह रहे हैं, लेकिन फिर भी आप बाहर निकलकर दुनिया देखना चाहते हैं. क्योंकि दुनिया में देखने के लिए बहुत कुछ है.


जग्गी वासुदेव

जो आपको यहां दिखाई दे रहा है, उससे कहीं ज्यादा बड़ी दुनिया है, तभी आप उसे बाहर देखने जाते हैं. तो इसी तरह से यह प्रश्न उठा है  क्या मैं एक आत्मा नहीं हूं?  लेकिन मैं इसके बारे में कुछ नहीं कहना चाहता, क्योंकि यह एक महज मान्यता है कि आप एक आत्मा हैं. आध्यात्मिकता का मतलब यह नहीं कि आप किसी आत्मा की तलाश में निकल जाएं. इसका सीधा-सा मतलब है कि आप इस तथ्य को समझें कि आपकी भौतिकता या भौतिक रूप से आप जो हैं, वह सब आपने बाहर से इकठ्ठा किया है. हम हर दिन जो खाना खाते हैं, उससे यह शरीर बना है.

तो आपकी भौतिकता एक तरह का संग्रह है. भौतिक अस्तित्व केवल तभी संभव है, जब उसकी एक निश्चित सीमा हो. भौतिकता की यही प्रकृति है. बिना एक निश्चित बाउंड्री के भौतिकता होगी ही नहीं. तो जब आप अपनी भौतिकता की सीमाओं को छू लेते हैं और समझ जाते हैं कि चाहे आप जो कर लें, भौतिकता हमेशा सीमा से बंधी रहेगी, तब आपमें भौतिकता से परे के आयाम की तलाश जागती है. तो जब आप भौतिकता से परे का आयाम छू लेते हैं तो हम कहते हैं कि आप आध्यात्मिक हैं.

आध्यात्मिकता का यह मतलब नहीं कि अंडे के आकार में कोई आत्मा कहीं तैर रही है, जिसे आपने देखा है और आपका उससे परिचय करा दिया गया है. यह सब कैलेंडर में आर्ट के तौर पर दिखाने के लिए तो ठीक है, लेकिन अगर आप वाकई विकास करना चाहते हैं तो भौतिकता की सीमाओं से आगे निकलना ही आध्यात्मिकता है. सुबह उठकर अगर आप कहते हैं ‘मैं तो पहले ही आत्मा हूं’ तो यह आध्यात्मिकता नहीं कहलाएगी. अगर आप सुबह उठते हैं तो इसका मतलब है कि आप एक शरीर हैं, आप एक मन हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप एक आत्मा हैं. अगर आप आत्मा होते तो न तो आपको सोने की जरूरत होती और न ही जागने की.

दुनिया में जीवन का आपका अनुभव एक शरीर के तौर पर, एक मन के तौर पर व भावनाओं के तौर पर होता है, न कि आत्मा के तौर पर. हो सकता है कि जब आप आंख बंद कर शांत भाव से एक जगह बैठें तो आप इस चीज को समझ पाएं कि ‘यह शरीर मैंने यहां इकठ्ठा किया है, यह मन मैंने इकठ्ठा किया है, जीवन तो इनसे कहीं ज्यादा है.’



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