आतंकवाद
आतंकवाद की घटना निश्चित रूप से उस सबसे जुड़ी है, जो समाज में हो रहा है. समाज बिखर रहा है.
आचार्य रजनीश ओशो |
उसकी पुरानी व्यवस्था, अनुशासन, नैतिकता, धर्म सब कुछ गलत बुनियाद पर खड़ा मालूम होता है. लोगों की अंतरात्मा पर अब उनकी कोई पकड़ नहीं रही. आतंकवाद का मतलब इतना ही है कि लोग मानते हैं कि मनुष्य को नष्ट करने से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है, जो अविनाशी है, बस पदार्थ ही पदार्थ है.
और पदार्थ को नष्ट नहीं किया जा सकता. सिर्फ आकार बदला जा सकता है. आतंकवाद का मतलब है कि अब तक जो सामाजिक रूप से किया जा रहा था, अब व्यक्तिगत तल पर होगा. ये आतंकवादी और अन्य अपराधी तो शिकार हैं, ये तो तथाकथित धर्म हैं, जो वास्तविक मुजरिम हैं क्योंकि उन्होंने मनुष्य की आनंद की सारी संभावना को ही नष्ट कर डाला है.
उन्होंने जीवन की छोटी-छोटी खुशियों का मजा लेने की संभावना को ही जला दिया. उस सब को निंदित कर दिया जो प्रकृति ने तुम्हें आनंदित होने के लिए दिया है, जिससे तुम उत्तेजित होते हो, प्रसन्न होते हो. सब कुछ छीन लिया. और कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन्हें वे नहीं छीन सकते क्योंकि वे तुम्हारी जैविकी का हिस्सा हैं. जैसे कि सेक्स, उन्होंने इसे इतना निंदित किया कि वह विषाक्त हो गया है.
जो व्यक्ति सुविधा में या ऐशो-आराम में जी रहा है, वह कभी आतंकवादी नहीं हो सकता. धर्मो ने ऐर्य की निंदा की और गरीबी की प्रशंसा की. अब धनी आदमी कभी आतंकवादी नहीं हो सकता. सिर्फ गरीब, जो कि ‘धन्यभागी’ हैं, वे ही आतंकवादी हो सकते हैं. उनके पास खोने को कुछ नहीं है, और वे समूचे समाज के खिलाफ उबल रहे हैं क्योंकि सभी उच्च वर्ग के पास वे चीजें हैं, जो इनके पास नहीं हैं. लोग भय में जी रहे हैं, नफरत में जी रहे हैं, आनंद में नहीं. अगर हम मनुष्य के मन का तहखाना साफ कर सकें और उसे किया जा सकता है.
ध्यान रहे, आतंकवाद बमों में नहीं है, किसी के हाथों में नहीं है, वह तुम्हारे अवचेतन में है. यदि इसका उपाय नहीं किया गया तो हालात बदतर से बदतर होते जाएंगे. और लगता है कि सब तरह के अंधे लोगों के हाथों में बम हैं. और वे अंधाधुंध फेंक रहे हैं. हवाई जहाजों में, बसों और कारों में, अजनबियों के बीच अचानक कोई आकर तुम पर बंदूक दाग देगा. और तुमने उसका कुछ बिगाड़ा नहीं था.
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