मृत्यु
मृत्यु क्या है? मृत्यु है ही नहीं. मृत्यु एक झूठ है-सरासर झूठ-जो न कभी हुआ, न कभी हो सकता है.
आचार्य रजनीश ओशो |
जो है, वह सदा है. रूप बदलते हैं. रूप की बदलाहट को तुम मृत्यु समझ लेते हो. तुम किसी मित्र को स्टेशन पर विदा करने गए; उसे गाड़ी में बिठा दिया. नमस्कार कर ली. हाथ हिला दिया. गाड़ी छूट गयी. क्या तुम सोचते हो, यह आदमी मर गया? तुम्हारी आंख से ओझल हो गया. अब तुम्हें दिखाई नहीं पड़ रहा है. लेकिन क्या तुम सोचते हो, यह आदमी मर गया?
बच्चे थे, फिर तुम जवान हो गए. बच्चे का क्या हुआ? बच्चा मर गया? अब तो बच्चा कहीं दिखायी नहीं पड़ता! जवान थे, अब के हो गए. जवान का क्या हुआ? जवान मर गया? जवान अब तो कहीं दिखायी नहीं पड़ता! सिर्फ रूप बदलते हैं. बच्चा ही जवान हो गया. जवान ही बूढ़ा हो गया. और कल जीवन ही मृत्यु हो जाएगा. यह सिर्फ रूप की बदलाहट है. दिन में तुम जागे थे, रात को सो जाओगे. दिन और रात एक ही चीज के रूपांतरण हैं. जो जागा था, वही सो गया. बीज में वृक्ष छिपा है. जमीन में डाल दो, वृक्ष पैदा हो जाएगा.
जब तक बीज में छिपा था, दिखाई नहीं पड़ता था. मृत्यु में तुम फिर छिप जाते हो, बीज में चले जाते हो. फिर किसी गर्भ में पड़ोगे; फिर जन्म होगा. और गर्भ में नहीं पड़ोगे, तो महाजन्म होगा, तो मोक्ष में विराजमान हो जाओगे. मरता कभी कुछ भी नहीं. विज्ञान भी इस बात से सहमत है. विज्ञान कहता है. किसी चीज को नष्ट नहीं किया जा सकता. एक रेत के छोटे से कण को भी वितान की सारी क्षमता के बावजूद हम नष्ट नहीं कर सकते. रेत को पीस दिया, तो और पतली रेत हो गई. उसको और पीस दिया, तो और पतली रेत हो गई. हम उसका अणु विस्फोट भी कर सकते हैं.
लेकिन अणु टूट जाएगा, तो परमाणु होंगे. और पतली रेत हो गई. हम परमाणु को भी तोड़ सकते हैं, तो फिर इलेक्ट्रान, न्यूट्रॉन, पूट्रान रह जाएंगे. और पतली रेत हो गई! मगर नष्ट कुछ नहीं हो रहा है. विज्ञान कहता है पदार्थ अविनाशी है. विज्ञान ने पदार्थ की खोज की, इसलिए पदार्थ के अविनाशत्व को जान लिया. धर्म कहता है चेतना अविनाशी है, क्योंकि धर्म ने चेतना की खोज की और चेतना के अविनाशत्व को जान लिया. विज्ञान और धर्म इस मामले में राजी हैं कि जो है, वह अविनाशी है. मृत्यु है ही नहीं. तुम पहले भी थे; तुम बाद में भी होओगे.
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