खुशी

Last Updated 08 Apr 2017 05:33:31 AM IST

हम खुशी पाने के लिए हरसंभव कोशिश करते हैं, और हमें खुशी का एहसास भी होता है, लेकिन फिर खुशी गायब हो जाती है. ऐसे में कहां गलती करते हैं हम?


जग्गी वासुदेव

एक बार शंकरन पिल्लै को भगवान से मिलने का अवसर मिला. भगवान ने कहा, ‘वत्स, तुम्हें मैं तीन वरदान देना चाहता हूं, मांग लो.’ ‘जो भी चीज मांगू मिलेगी प्रभो?’ ‘खुशी से. मगर एक शर्त है, जो भी तुम्हें मिलेगा उसका दुगुना भाग तुम्हारे मित्र को भी मिलेगा, ठीक है?’

भगवान ने कहा. शंकरन पिल्लै खुशी-खुशी घर पहुंचे. ‘हे मेरे भगवान, राजमहल जैसा घर मिल जाए.’ अगले ही क्षण उनका पुराना-सा घर आलीशान महल में तब्दील हो गया. खिड़की से झांककर देखो, जहां उनका मित्र रहता है, वहां दो महल शान से खड़े थे. शंकरन पिल्लै का माथा ठनका. ‘खैर, अब मेरे साथ आमोद-प्रमोद करने के लिए एक सुंदरी चाहिए.’ मांगते ही उनके पलंग पर रूपवती रमणी लेटी हुई मिली. शंकरन पिल्लै अपनी जिज्ञासा को नहीं रोक पाए. खिड़की से झांककर देखा. पलंग पर उनका मित्र दो सुंदरियों के बीच बैठा था.

दोनों आपस में होड़ लगाते हुए मित्र पर प्यार बरसा रही थीं. शंकरन पिल्लै के लिए यह दृश्य असहनीय लगा. जल्दी-जल्दी अपना तीसरा वर भी माँग बैठा. ‘हे भगवान, मेरी एक आंख छीन लो.’ अपने पास जो वस्तु है वह अगले आदमी के पास न हो तभी लोग शंकरन पिल्लै की तरह खुश होते हैं. ये लोग अपने पास की चीज भी खोकर खुश होते हैं. आप एक गाड़ी खरीदते हैं, मन बड़ा खुश होता है.

अगर आपका पड़ोसी उससे भी बढ़िया कीमती कार खरीद लाए तो आपकी खुशी टांय-टांय फिस्स हो जाएगी. हजार साल पहले आदमी मोटरकार के बारे में सुना तक नहीं था. लेकिन उन दिनों अपनी गाय की तुलना में पड़ोसी की गाय ज्यादा दूध दे, तो आदमी का मन बैठ जाता. गाय के बजाए अब कार आ गई है, अन्यथा बुनियादी तौर पर क्या आदमी का दुख दूर हो गया है? नहीं न?

पिछली कुछ सदियों के अंदर मनुष्य ने अपनी सुख-सुविधाओं के लिए इस पृथ्वी का चेहरा ही बदल दिया है. दूसरे प्राणियों के अस्तित्व की कोई परवाह किए बिना उसने कीट-पतंग, पशु-पक्षी सभी के स्थानों पर कब्जा कर लिया है. वृक्ष-लताओं और घास-फूस को भी नहीं बख्शा है. जमीन, पानी सभी का मनमाने ढंग से दुरु पयोग करके ऐसा माहौल पैदा कर दिया है कि जिसमें सांस लेना भी दूभर लग रहा है.
यह सब किसलिए?



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