अद्वितीय कृष्ण

Last Updated 04 Apr 2017 06:27:44 AM IST

कृष्ण जैसा प्रेम करने वाला आदमी पृथ्वी पर मुश्किल से हुआ है. करोड़ों वर्ष लग जाते हैं, तब पृथ्वी उस तरह के एकाध आदमी को पैदा करने में सफल हो पाती है.




आचार्य रजनीश ओशो

एक मेरे मित्र जापान से लौटे. वहां से एक मूर्ति खरीद लाए. वह मूर्ति उनकी समझ के बाहर उन्हें मालूम पड़ी. पर बहुत प्यारी लगी तो वे उसे ले आए. मेरे पास वे मूर्ति लाए और कहने लगे, मैं इसका अर्थ नहीं समझा हूं.

यह बड़ी अजीब मूर्ति मालूम पड़ती है. मूर्ति सच में ही अजीब थी. मैं भी देख कर चौंका. और मैं देख कर खुशी और आनंद से भी भर गया. मूर्ति अद्भुत थी. वह मूर्ति थी एक सिपाही की मूर्ति, लेकिन साथ ही वह एक संत की मूर्ति भी थी. उस मूर्ति के एक हाथ में थी तलवार नंगी और उस तलवार की चमक उस मूर्ति के आधे चेहरे पर पड़ रही थी, और वह आधा चेहरा ऐसा मालूम पड़ता था जैसे अर्जुन का चेहरा रहा हो.

जैसे तलवार की चमक थी, वैसा ही वह आधा चेहरा जिस पर तलवार चमक रही थी, वह आधा चेहरा भी उतना ही चमक से भरा हुआ था. उतने ही शौर्य, उतने ही ओज, उतने ही वीर्य से. और दूसरे हाथ में उस मूर्ति के एक दीया था. और दीये की ज्योति की चमक चेहरे के दूसरे हिस्से पर पड़ती थी. और वह दूसरा हिस्सा बिल्कुल ही दूसरा था. वह चेहरा ऐसा मालूम पड़ता था जैसे बुद्ध का रहा हो इतना शांत, इतना मौन, इतना करु णा से भरा हुआ.

वह एक ही आदमी का चेहरा था. एक हाथ में तलवार और एक हाथ में दीया.  मेरे मित्र पूछने लगे, मैं समझा नहीं, यह कैसा आदमी है? मैंने कहा कि इसी आदमी की तलाश में दुनिया है हमेशा से. एक ऐसा आदमी चाहिए जो तलवार की तरह अडिग भी हो, जो तलवार की तरह ओज से भी भरा हो, समय पड़ने पर जो तलवार बन जाए. लेकिन उस आदमी के भीतर शांति और करु णा का दीया भी हो. जिस आदमी के भीतर करुणा, शांति और प्रेम का दीया है, उसके हाथ में तलवार खतरनाक नहीं.

उसके हाथ में तलवार भी मंगल सिद्ध होगी. जिस आदमी के भीतर क्रोध और घृणा का अंधकार है, उसके हाथ में तलवार भी न हो, एक छोटा-सा कंकड़ भी खतरनाक सिद्ध होने वाला है. आदमी भीतर कैसा है? अगर अशांत है तो उसके हाथ की शक्ति शैतान बन जाएगी और अगर भीतर आदमी शांत है, तो उसके हाथ की शक्ति सदा से भगवान के चरणों में समर्पित रही है.



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