प्रतिभावान

Last Updated 16 Mar 2017 01:30:48 AM IST

संसार में चार वर्ग के लोग होते हैं. एक वे जिनकी विवेचना बुद्धि नहीं के बराबर होती है.


श्रीराम शर्मा आचार्य

साधन और मार्गदर्शन के लिए दूसरों पर निर्भर रहते हैं. जीवनोपयोगी साधन तक अपनी स्वतंत्र चेतना के बलबूते नहीं जुटा पाते. उनके उत्थान-पतन का निमित्त कारण दूसरे ही बने रहते हैं.

दूसरा वर्ग वह है जो समझदार होते हुए भी संकीर्ण स्वार्थपरता से घिरा रहता है. योग्यता और तत्परता जैसी विशेषताएं होते हुए भी उन्हें मात्र लोभ, मोह, अहंकार की पूर्ति के लिए ही नियोजित किए रहते हैं.

तीसरा वर्ग प्रतिभाशालियों का है. भौतिक क्षेत्र में कार्यरत रहते हैं तो अनेक व्यवस्थाएं बनाते हैं. अनुशासन-अनुबंधों से बंधे रहते हैं जिनने बड़ी योजनाएं बनाते-चलाते हुए महत्त्वपूर्ण सफलताएं पाई, प्रतिस्पर्धाएं जीतीं.

सबसे ऊंची श्रेणी देवमानवों की है, जिन्हें महापुरुष भी कहते हैं. वे प्रतिभाशाली होते हैं, पर उसका उपयोग आत्म परिष्कार से लेकर लोकमंगल तक के उच्चस्तरीय प्रयोजनों में ही किया करते हैं. समाज के उत्थान और सामयिक समस्याओं के समाधान का श्रेय उन्हें जाता है. बड़े कामों को बड़े शक्ति केंद्र ही संपन्न कर सकते हैं.

दलदल में फंसे हाथी को बलवान हाथी ही खींच कर पार करते हैं. पटरी से उतरे इंजन को समर्थ क्रेन ही उठाकर यथा स्थान रखती है. समाज-संसार की बड़ी समस्याएं को हल करने के लिए ऐसे ही वरिष्ठ प्रतिभावानों की जरूरतपड़ती है. प्रतिभाशाली न केवल स्वयं श्रेय अर्जित करते हैं वरन अपने क्षेत्र, समुदाय और देश की अति विकट दीखने वाली उलझनों को सुलझाने में भी सफल होते हैं. इसी कारण भावनावश ऐसे लोगों को देवदूत तक कहते हैं. आड़े समय में इन उच्चस्तरीय प्रतिभाओं की ही जरूरत होती है.

उन्हीं को खोज कर उभारा जाता है. मनस्वी, तेजस्वी और ओजस्वी ऐसे कर्मयोग की साधना में ही निरत रहते हैं, जो उनके व्यक्तित्व को प्रामाणिक और कर्तृत्व को ऊर्जा का उद्गम स्त्रोत सिद्ध कर सकें.

वर्तमान समय वि इतिहास में अद्भुत स्तर का है. एक ओर महाविनाश का तूफान उठ रहा है, तो दूसरी ओर सतयुगी नवनिर्माण की उमंगें. इस समय में चौथे वर्ग के देवदूतों की जरूरत है. ऐसे प्रतिभावान एकत्रित हों और समाज के नवनिर्माण में जुटें और विनाश से समाज को उबार कर विकास की दिशा में ले जाएं.



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