होलिका
होली भारत का बहुत ही लोकप्रिय और हर्षोल्लास से परिपूर्ण त्योहार है. प्रत्येक वर्ष मार्च माह के आरम्भ में यह त्योहार मनाया जाता है.
![]() श्री श्री रविशंकर |
लोगों का विश्वास है कि होली के चटक रंग ऊर्जा, जीवंतता और आनंद के सूचक हैं. होली की पूर्व संध्या पर बड़ी मात्रा में होलिका दहन किया जाता है और लोग अग्नि की पूजा करते हैं.
प्रह्लाद से जुड़ी एक किंवदंती के अनुसार तभी से होली का त्योहार आरम्भ हुआ था. प्रह्लाद ईश्वर को समर्पित एक बालक था, परन्तु उसके पिता ईश्वर को नहीं मानते थे. वह बहुत घमंडी और क्रूर राजा थे. तो कहानी कुछ इस तरह से आगे बढ़ती है कि प्रह्लाद के पिता एक नास्तिक राजा थे और उनका ही पुत्र हर समय ईश्वर का नाम जपता रहता था.
इस बात से आहत हो कर वह अपने पुत्र को सबक सिखाना चाहते थे. उन्होंने अपने पुत्र को समझाने के सारे प्रयास किए, परन्तु प्रह्लाद में कोई परिवर्तन नहीं आया. जब वह प्रह्लाद को बदल नहीं पाए तो उन्होंने उसे मारने की सोची. इसलिए उन्होंने अपनी एक बहन की मदद ली. राजा की बहन का नाम होलिका था.
होलिका ने प्रह्लाद को जलाने के लिए अपनी गोद में बिठाया, मगर प्रह्लाद के स्थान पर वह स्वयं जल गई और ‘हरि ऊं’ का जाप करने एवं ईश्वर को समर्पित होने के कारण, प्रह्लाद की आग से रक्षा हो गई और वह सुरक्षित बाहर आ गया. कुछ गावों में लोग अंगारों पर से हो कर गुजर जाते हैं और उन्हें कुछ भी नहीं होता, उनके पैरों में छाले भी नहीं पड़ते! जीवन में विश्वास का बड़ा योगदान होता है. आने वाले मॉनसून पर होलिका दहन का प्रभाव पड़ता है.
होलिका भूतकाल के बोझ का सूचक है जो प्रह्लाद की निश्छलता को जला देना चाहती थी. लेकिन नारायण भक्ति से गहराई तक जुड़े हुए प्रह्लाद ने सभी पुराने संस्कारों को स्वाहा कर दिया और फिर नये रंगों के साथ आनंद का उदय हुआ. हमारी भावनाएं आग की तरह हमें जला देती हैं, परंतु जब रंगों का फव्वारा फूटता है तब हमारे जीवन में आकषर्ण आ जाता है.
अज्ञानता में भावनाएं एक बोझ के समान होती हैं, जबकि ज्ञान में वही भावनाएं जीवन में रंग भर देती हैं. सभी भावनाओं का संबंध रंग से होता है. जैसे, लाल रंग क्रोध से, हरा ईर्ष्या से, पीला पुलकित होने या प्रसन्नता से, गुलाबी प्रेम से, नीला रंग विशालता से, श्वेत शांति से और केसरिया संतोष/त्याग से एवं बैंगनी ज्ञान से जुड़ा हुआ है.
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