ग्रह
पिछले कुछ दिनों से यह धरती एक बड़े बदलाव से गुजर रही है और यह प्रक्रिया आने वाले कुछ और समय तक जारी रहेगी.
![]() आचार्य जग्गी वासुदेव |
संक्रांति और उत्तरायण की शुरु आत के साथ ही सूर्य और पृथ्वी के संबंध में और जीवन के अन्य रूपों और सूर्य के संबंध में बदलाव आता है.
सूर्य पृथ्वी पर मौजूद सभी ऊर्जा को स्रोत है. ग्रहों की गतिविधि में शीतकालीन संक्राति उत्तरी गोलार्ध के लिए एक नई शुरु आत, एक नई संभावना और नई ताजगी भरी जिंदगी का प्रतीक होती है. साल के इस समय में बसंत के आगमन की तैयारी चल रही होती है.
इस दौरान पृथ्वी और उसके वातावरण में जबरदस्त गतिविधियां चल रही होती हैं. पृथ्वी का हर प्राणी इसे साकार करने के लिए अधिक से अधिक काम कर रहा है. यहां दो तरह के लोग होते हैं, एक जो चीजों को साकार करने में लगे रहते हैं, और दूसरे वे, जो चीजों के साकार होने पर उसका आनंद उठाते हैं और जब चीजें उनके मनमाफिक नहीं होतीं तो वे शिकायत करते हैं.
हो सकता है कि आप उन लोगों को अपने सामने न देख पाएं, जो चीजों को साकार करने में लगे हैं, लेकिन पृष्ठभूमि में वे बिना थके लगातार काम कर रहे हैं. साल बदलने का समय ऐसा होता है मानो इस धरती सहित इस पर मौजूद सारे जीवन अपना चोला बदल रहे हों. खासकर उत्तरी गोलार्ध में जीवन फसल पकने, फूलों के खिलने और फलों के आने की तैयारी कर रहा होता है.
बहुत सारे लोग सोचते हैं कि नए साल के स्वागत में उन्हें कुछ मूर्खतापूर्ण काम करने चाहिए, जैसे मूखरे की तरह दारू पिएं, मूर्खता भरे अंदाज में गाड़ी चलाएं और यहां तक कि मूखरे की तरह मर जाएं. आज किसी भी चीज के लोकप्रिय होने के लिए उसे बेवकूफी भरा होना जरूरी हो गया है. क्या हमें जश्न मनाने के अपने विचार को फिर से परिभाषित करने की जरूरत नहीं है, ताकि हम कुछ सार्थक और अर्थपूर्ण चीजों का आंनद ले सकें?
क्या आपमें हिम्मत है कि आप आने वाले साल में खुद से इस बात का वादा कर सकें कि आप अपने से बड़ी चीज को घटित होने देंगे. हर प्राणी अपनी प्रवृत्ति के अनुसार काम करता, जीता और फिर कुदरत के नियमानुसार मर जाता है. लेकिन इंसान होने का मतलब है कि हम अपने कुदरती नियमों से ऊपर उठकर ऐसी चीज को साकार कर सकते हैं, जो हमसे बड़ी हो. आपमें यह संभावना है कि आप इसके लिए कोशिश कर सकें, बजाए इसके कि आप ‘यह मेरा, यह तेरा’ जैसे विचारों की सीमाओं में बंधकर जीवन गुजारें.
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