अस्तित्व

Last Updated 09 Jan 2017 01:50:00 AM IST

दुनिया में तो इतने सारे लोग हैं, जब वे दुनिया से चले जाएंगे तो लोग उन्हें पहचानेंगे कैसे? क्या उसने अपनी कोई पहचान बनाई?




सुदर्शनजी महराज

वह तो जीवन भर दिग्भ्रमित होता रहा और ऐसे ही एक दिन उसकी सांसे बंद हो गई. आप शून्य से आए थे और शून्य में ही चले गए. न तो आपके किसी कार्य की चर्चा हो रही है और न ही कोई आपको स्वीकृति दे रहा है. ऐसी परिस्थिति में आपके जीवन का क्या होगा?

आप चाहते हैं कि जीवन में एक स्टेपनी बनकर रहें या आप चाहते हैं कि आप समाज की मुख्यधारा में रहकर समाज और अपना नेतृत्व करें. देना चाहते हैं, तो दीजिए, आपको बहुत कुछ देना है, अपने समाज को. लेकिन आपके पास रहेगा तभी तो दे सकेंगे.

हम लोग तो हमेशा इसी चिंता में पड़े रहते हैं कि हम सुखी कैसे रहें? हमारे पास धन कैसे हो? जो जितना सक्षम होगा, उसका अस्तित्व उतने ही लंबे समय के लिए कायम रहेगा.

मृत्यु के पश्चात दुनिया उन्हें ही याद करती है, जिन्होंने समाज को कुछ दिया. जिन्होंने लोकहित के लिए कुछ त्याग किया. हममें से ज्यादातर लोग चल तो रहे हैं लेकिन किस दिशा में यह उन्हें खुद पता नहीं. ठीक वैसे ही जैसे किसी ने भीड़ के एक व्यक्ति से पूछा कि किधर जा रहे हो तो उसने कहा कि जिधर नेताजी जा रहे हैं.

उसी व्यक्ति ने भीड़ के अंतिम व्यक्ति से सवाल किया कि भाई आप कहां जा रहे हैं तो उसने कहा कि जिधर भीड़ जा रही है. हममें से ज्यादातर लोगों की स्थिति आज यही है. हम कर्म अच्छे करते नहीं और अच्छे फल की आकांक्षा रखते हैं.

हम भूल जाते हैं कि परमात्मा के दरबार में अच्छे और बुरे कर्मो का लेखा-जोखा अलग-अलग मौजूद है. हम चाहें तो जीवन में थोड़ा सजग होकर अपना परलोक सुधार सकते हैं. सही मायने में स्वर्ग और नर्क कहीं और नहीं बल्कि इसी दुनिया में यहीं हैं.

जो लोग सिर्फ  स्वयं की जेब भरने में लगे रहते हैं और जीवन में कोई सेवा का कार्य नहीं करते. उन्हें यह बात समझ लेनी चाहिए कि उनका अस्तित्व आज इसलिए कायम है क्योंकि उन्होंने पहले कुछ अच्छा किया होता है.

परंतु इस बात पर भी विचार करें कि उनके आगे के लिए क्या है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा हे अर्जुन! तुम्हें कर्म करने का अधिकार है. तुम्हारे जीवन का उद्देश्य है कर्म करना. प्रतिक्षण कर्मशील बने रहो. इस सिद्धांत को हमेशा याद रखें कि ‘विस्तार ऋजुता का होता है, वक्रता का नहीं.’ जब तक तुम्हारे पास वक्रता रहेगी, तुम टेढ़े रहोगे, तब तक तुम्हारा विस्तार हो ही नहीं सकता है. आस्तित्व उसी का रहता है, जो स्वयं फिट है.



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