परिपक्व व्यक्ति
परिपक्व व्यक्ति के गुण बड़े विचित्र हैं. सर्वप्रथम, वह व्यक्ति नहीं होता. वह अब एक अहंकार नहीं है.
![]() आचार्य रजनीश ओशो |
उसकी उपस्थिति है, किंतु वह व्यक्ति नहीं है. दूसरा, वह बच्चे जैसा अधिक होता है..सरल और निर्दोष; इसीलिए मैंने कहा कि एक परिपक्व व्यक्ति के गुण बड़े विचित्र हैं, क्योंकि परिपक्वता ऐसा आभास देती है जैसे की वह अनुभवी हो गया है, जैसे कि वह आदमी बूढ़ा होता है. शारीरिक दृष्टि से वह बूढ़ा हो सकता है, मगर आत्मिक दृष्टि से वह एक निर्दोष बालक होता है.
उसकी परिपक्वता मात्र जीवन से इकठ्ठा किया गया अनुभव नहीं है. फिर वह बच्चा नहीं होगा, और फिर वह एक उपस्थिति नहीं होगा; वह एक अनुभवी व्यक्ति होगा-ज्ञानवान किंतु परिपक्व नहीं. परिपक्वता का तुम्हारे जीवन के अनुभवों से कोई संबंध नहीं है. उसका संबंध तुम्हारी अंतर्यात्रा से होता है, भीतर के अनुभव. जितना अधिक वह अपने भीतर जाता है, उतना अधिक परिपक्व वह होता है.
जब वह अपनी चेतना के केंद्र पर पहुंच गया है, तो वह पूर्णतया परिपक्व होता है. किंतु उस क्षण व्यक्ति लुप्त हो जाता है, और मात्र उपस्थिति बचती है. अहंकार लुप्त हो जाता है, मात्र मौन बचता है. ज्ञान लुप्त हो जाता है, मात्र निर्दोषता बचती है. मेरे लिए, परिपक्वता आत्मानुभूति का दूसरा नाम है: तुम अपनी क्षमता के चरम पर आ गए हो, वह वास्तविक हो गई है. बीज एक लंबी यात्रा से लौटा है, और खिल गया है. परिपक्वता की एक सुगंध होती है.
यह व्यक्ति को एक विराट सौंदर्य प्रदान करती है. यह प्रज्ञा देती है, जो भी सबसे तीक्ष्ण प्रज्ञा संभव है वह. यह उसको मात्र प्रेम बना देती है. उसका कर्म प्रेम होता है, उसका अकर्म प्रेम होता है; उसका जीवन प्रेम होता है, उसकी मृत्यु प्रेम होती है. वह मात्र प्रेम का एक पुष्प होता है. पश्चिम के पास परिपक्वता की परिभाषाएं हैं, जो बहुत बचकानी हैं.
पश्चिम का अर्थ परिपक्वता से यह है कि तुम अब निर्दोष नहीं रहे, कि तुम जीवन के अनुभवों से पक गए हो, कि तुम्हें आसानी से धोखा नहीं दिया जा सकता, कि तुम्हारा शोषण नहीं किया जा सकता, कि तुम्हारे भीतर कुछ सशक्त पत्थर जैसा है-एक रक्षा कवच, एक सुरक्षा. यह परिभाषा बहुत साधारण है, बहुत सांसारिक. हां, संसार में तुम इस प्रकार के परिपक्व लोग पाओगे. मगर जिस प्रकार मैं परिपक्वता को देखता हूं वह पूर्णतया भिन्न है, इस परिभाषा का चरम विपरीत. परिपक्वता तुम्हें एक सुदृढ़ पत्थर नहीं बनाएगी; यह तुम्हें अति कोमल, अति भेद्य, अति सरल बनाएगी.
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