मौनी अमावस्या: संगम तट पर श्रद्धालुओं संग होता है देव और पितरों का भी संगम

Last Updated 24 Jan 2020 03:46:24 PM IST

तीर्थराज प्रयाग में माघ मास की मौनी अमावस्या के दिन गंगा, यमुना और सरस्वती के त्रिवेणी तट पर श्रद्धालुओं संग देव और पितर भी संगम में स्नान कर होंगे धन्य।


तीर्थराज प्रयाग में मौनी अमावस्या स्नान के महात्म का पुराणों में वृहद वर्णन है। शासों के अनुसार प्रयाग में माघ माह के स्नान का सबसे अधिक महत्वपूर्ण पर्व मौनी अमावस्या होता है। मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन सभी देवी-देवता, पितर आदि त्रिवेणी संगम में अदृश्य स्नान कर अपने को धन्य मानते हैं। माघ की अमावस्या के दिन यहां पितृलोक के सभी पितृदेव भी आते हैं। यह दिन पृथ्वी पर देवों एवं पितरों के संगम के रूप में मनाया जाता हैं। पितरों से संबंधित सभी श्राद्ध-तर्पण आदि कार्य अमावस्या तक और अनुष्ठान या बड़े यज्ञ आदि कार्य शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तक किए जाते हैं।
    
इन सभी युतियों में माघ माह में सूर्य एवं चन्द्र का मिलन सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
    
वैदिक शोध एवं सांस्क़ृतिक प्रतिष्ठान कर्मकाण्ड प्रशिक्षण के आचार्य डा आत्मराम गौतम ने बताया कि महाभारत, रामचरितमानस, पद्मपुराण, स्कंदपुराण, मत्सपुराण, ऋगवेद और अनेक धर्मग्रंथों में प्रयाग के पुण्य के महात्म का वृहद वर्णन किया गया है।

गौतम ने बताया कि स्कंदपुराण में माघ कृष्ण की अमावस्या को युगादि तिथि बतायी गयी है। इस तिथि को चारों युगों में से किसी एक युग का आरंभ हुआ था। ‘‘माघे पंचदशी कृष्णा द्वापरादि: स्मृता बुधै:’’ द्वापर की आदि तिथि है जबकि कुछ विद्वान इसे कलियुग की प्रारंभ तिथि मानते हैं। युगादि तिथि बहुत शुभ होती है। इस दिन किया गया जप, तप, ध्यान, स्नान, दान, यज्ञ, हवन कई गुना फल देता  है। प्रत्येक युग में जो सौ वर्षों तक दान करने से जो पुण्य मिलता है वह युगादि काल में एक दिन के दान से प्राप्त हो जाता है।
   
गोस्वामी तुलसीदास ने प्रयाग में ‘माघ मेले’ की महिमा का बखान ‘बालकाण्ड’ में ‘‘माघ मकरगति रवि जब होई, तीरथपतिहि आव सब कोई देव दनुज किन्नर नर श्रेणी,  सादर मज्जहिं सकल त्रिवेणी’’ की रचना कर की। प्रयाग के त्रिवेणी में माघ मास में देव, दानव, नर और पितृ सभी का संगम होता है।
    
आचार्य ने बताया कि शास्त्रो में प्रयाग में पहुंचना बड़े पुण्यों का फल बताया गया है । प्रयाग महात्म सुनना पुण्य फल देता है। ‘‘शास्त्र कार्तिकेय स्नानं माघे स्नानं शतांनीच वैशाके नर्मदा कोटी कुम्भ स्नाने तत्फलं।’’ नर्मदा के करोड़ो स्नान वैशाख में करो, कार्तिक के सैकडो स्नान करो तो माघ मास के स्नान करो लेकिन प्रयाग राज में एक स्नान करने से सम्पूर्ण फल मिलता है।
  
उन्होंने बताया कि महाभारत में कहा गया है कि माघ मास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्यतीर्थ का समागम होता है। नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघ मास में प्रयाग में स्नान करता है वह सभी प्रकार के पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में स्थान का भागी होता है।

गौतम ने बताया कि ‘‘अमेघादि कृत्वेको माघकृत तीर्थ नायके। माघ स्नात्य नामोर्यध्ये पावनत्वेन लक्षयते।’’ अर्थात माघ मास में तीर्थ राज प्रयाग में स्नान करने से अमेघ यज्ञ करने जैसा फल प्राप्त होता है और मनुष्य सर्वथा पवित्र हो जाता है। पद्मपुराण के अनुसार माघ मास में व्रत, दान एवं तप करने से भगवान को उतनी प्रसन्नता नहीं होती है जितनी माघ मास में स्नान से होती है।
    
ऋगवेद के अनुसार त्रिवेणी में स्नान करने मात्र से मोक्ष का फल मिलता है और मत्सपुराण में कहा गया है कि तीर्थराज प्रयाग का दर्शन, इसकी महिमा का गायन और भजन तथा स्पर्श मात्र ही मुक्ति दायक है। गोस्वामी तुलसीदास रामचरित मानस में पहले ही कह चुके हैं ‘‘को कहि सकई प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।’’ उन्होंने बताया कि शास्त्रों के अनुसार इस दिन मौन रखना, गंगा स्नान करना और दान देने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

अमावस्या के विषय में कहा गया है कि इस दिन मन, कर्म, तथा वाणी के जरिए किसी के लिए अशुभ नहीं सोचना चाहिए। केवल बंद होठों से उपांशु क्रिया करते हुए ‘‘ओं नमो भगवते वासुदेवाय, ओं खखोल्काय नम:, ओं नम: शिवाय’’ मंत्र पढ़ते हुए अर्ध्य आदि देना चाहिए।
  
मान्यताओं के अनुसार समुद्र मंथन में प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में जहां-जहां भी अमृत की बूंदें गिरी थीं उन-स्थानों पर यदि मौनी अमावस्या के दिन जप-तप, स्नान आदि किया जाए तो और भी पुण्यप्रद होता है।

सतयुग में तप से, द्वापर में श्रीहरि की भक्ति से, श्वेता में बह्मज्ञान और कलियुग में दान से मिले हुए पुण्य के बराबर माघ मास की मौनी अमावस्या में केवल किसी भी संगम में स्नान दान से भी उतना ही पुण्य मिल जाता है। इस दिन स्नान के बाद अपने सामर्थ्य के अनुसार अन्न, वस्त्र, धन आदि का दान देना चाहिए। इस दिन तिल दान भी उत्तम कहा गया है।
     
उन्होंने बताया कि मुनि शब्द से ही ‘मौनी’ शब्द की उत्पत्ति हुई है। इसीलिए इस व्रत को मौन धारण करके समापन करने वाले को मुनि पद की प्राप्ति होती है। इस दिन मौन रहकर यमुना या गंगा में स्नान करने का विशेष महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है की होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है उससे कई गुना अधिक पुण्य मन में हरी का नाम लेने से मिलता है।
     
आचार्य ने पद्मपुराण का हवाला देते हुए बताया कि माघ मास के कृष्णपक्ष की अमावस्या को सूर्योदय से पहले जो तिल और जल से पितरों का तर्पण करता है वह स्वर्ग में अक्षय सुख भोगता है। तिल का गौ बनाकर सभी सामग्रियों समेत दान करता है वह सात जन्मों के पापों से मुक्त हो स्वर्ग का सुख भोगता है। प्रत्येक अमावस्या का महत्व अधिक है।

युगादि तिथि तथा मकरस्थ रवि होने के कारण मौनी अमावस्या का महत्व कहीं अधिक महत्व है।
      
स्कन्दपुराण के अनुसार पितरों के उद्देश्य से भक्तिपूर्वक गुड, घी और तिल के साथ मधुयुक्त खीर गंगा में डालते हैं उनके पितर सौ वर्ष तक तृप्त बने रहते हैं। वह परिजन के कार्य से संतुष्ट होकर संतानों को नाना प्रकार की मनोवांछित फल प्रदान करते हैं। गंगा तट पर एकबार पिण्डदान करने मात्र से तिल मिश्रित जल के द्वारा अपने पितरों का भव से उद्धार कर देता है।

वार्ता
इलाहाबाद


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